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गाथा : ६०-६३ ]
तदिश्रो महाहियारो
भवनवासिनीदेवियोंका निरूपण
किण्हा रयण-सुमेधा देवी - णामा सुकंठ - श्रभिहारणा । णिरुवम-रूव-धराम्रो चमरे पंचग्ग-महिसीश्री ||२०||
अर्थ :- चमरेन्द्र के कृष्णा, रत्ना, सुमेधा देवी और सुकंठा नामकी अनुपम रूपको धारण करनेवाली पाँच अग्रमहिषियों हैं ॥१०॥
महिसीप समं सहस्याणि होति पत्तेक्कं । परिवारा देवीथ्रो चाल- सहस्साणि संमिलिदा ॥१॥
८००० | ४०००० |
अर्थ :- देवियों में से प्रत्येकके अपने साथ आठ हजार परिवार देवियाँ होती हैं। इसप्रकार मिलकर सब परिवार देवियाँ चालीस हजार प्रमाण होती हैं ॥ ६१ ॥
चमरग्गिम-महिसीणं श्रट्ठ-सहस्सा विकुब्वणा संति । पत्तक्कं श्रप्प-समं णिरुवम- लावण्ण-रूहि ॥६२॥
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अर्थ :-- चमरेन्द्रकी श्रग्र-महिषियोंमेंसे प्रत्येक अपने ( मूल शरीरके ) साथ, अनुपम रूप-लावण्य से युक्त श्राठ हजार प्रमाण विक्रियानिर्मित रूपोंको धारण कर सकती हैं ||२||
सोलस - सहरसमेत्ता वरुलहियाओ हवंति चमरस्स । छप्पण्ण- सहस्साणि संमिलिदे
सव्व - देवी
१६००० | ५६०००
।।६३॥
अर्थ :- चमरेन्द्र के सोलह हजार प्रमाण वल्लभा देवियां होती हैं। इसप्रकार चमरेन्द्रकी पाँचों प्रग्र-देवियोंकी परिवार देवियों और वल्लभा देवियोंको मिलाकर, सर्व देवियाँ छप्पन हजार होती हैं ||१३||