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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ६२-६८ प्रत्येक इन्द्रके परिवार-देव-देवियोंका निरूपण एक्केक्कस्सि इंदे परिवार-सुरा हवंति 'दस भेदा । पडिइंदा तेत्तीसत्तिदसा सामाणिया-दिसाइंवा ।।६२॥ तणुरक्खा तिप्परिसा सत्ताणीया पइण्णभियोगा। विधिलिया हमि समतोमगिया इंट-पारिवारा ।।६३॥
अर्थ :-प्रतीन्द्र, वायस्त्रिश, सामानिक, दिशाइन्द्र (लोकपाल), तनुरक्षक, तीन पारिषद, सात-अनीक, प्रकीर्णक, प्राभियोग्य और किल्विषिक, ये दस, प्रत्येक इन्द्र के परिवार देव होते हैं। इसप्रकार क्रमशः इन्द्रके परिवार देव कहे गये हैं ॥६२-६३।।।
इंदा राय-सरिच्छा जुवराय-समा हवंति पडिइंवा ।
पुत्त-णिहा तेत्तीसत्तिवसा सामारिगया कलत्तं वा ॥६५॥ अर्थ :-इन्द्र राजा सदृश, प्रतीन्द्र युवराज सदृश, त्रास्त्रिश देव पुत्र सदृश और सामानिक देव कलत्र तुल्य होते हैं ।।६५।।
चत्तारि लोयपाला 'सारिच्छा होंति तंतवालाएं ।
तणुरक्खारण समाणा सरीर-रक्खा सुरा सन्चे ॥६६॥ प्रर्य :-चारों लोकपाल तन्त्रपालोंके समान और सब तनुरक्षक देव राजाके अंग-रक्षकके । समान होते हैं ॥६६॥
बाहिर-मज्झन्भंतर तंडय-सरिसा हवंति तिप्परिसा।
सेणोवमा अरणीया पदण्णया पुरजण-सरिच्छा ॥६७॥ प्रर्प :-राजाकी वाह्य, मध्य और अभ्यन्तर समितिके सदृश देवोंमें भी तीन प्रकारको परिषद् होती है । अनीक देव सेना तुल्य और प्रकीर्णक देव पुरजन सदृश होते हैं ॥६७!
परिवार-समाणा ते अभियोग-सुरा हवंति" किदिबसिया। पाणीयमाणधारी' देवाणिवस्स गावव्यं ॥६ ॥
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१. क. दह । २, द. ब. क. ज. ठ. सावंता। ३ द. ससरीरं, व. सरीरं बा। ४. द. हुवंति । ५. द. हुवंति । ६. ब. माणाधीरो । क. ज. स. माणुधारी।