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तदियो महाहियारो
भवनोंका विस्तार आदि एवं उनमें निवास करने वाले देवोंका प्रमाणसमचउरस्सा भवणा वज्जमया-दार वज्जिया सव्वे । बहलत्त तिसर्याणि संखासंखेज्ज-जोयणा वासे ॥२५॥ संखेज्ज-रु व भवणेसु भवण - देवा वसंति संखेज्जा । संखातीदा वासे प्रच्छंती सुरा असंखेज्जा ॥ २६ ॥
गाया : २५-२६ ]
भवरण- सरूवं समत्ता ॥१०॥
अर्थ :- भवनवासी देवोंके ये सब भवन समचतुष्कोण और वज्रमय द्वारोंसे शोभायमान हैं। इनकी ऊँचाई तीनसो योजन एवं विस्तार संख्यात और असंख्यात योजन प्रमाण है । इनमेंसे संख्यात योजन विस्तार वाले भवनों में संख्यात देव रहते हैं तथा श्रसंख्यात योजन विस्तार वाले भवनों में प्रसंख्यात भवनवासी देव रहते हैं ।। २५-२६।।
भवनों के विस्तारका कथन समाप्त हुआ ।।१०।। भवन - वेदियों का स्थान, स्वरूप तथा उत्सेध श्रादि
तेसु चसु दिसासु जिरा-विट्ट - प्रमाण- जोयणे गंता । मज्झमि दिव्य वेदी पुह पुह बेटु दि एक्केक्का ॥२७॥
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अर्थ :- जिनेन्द्र भगवान् से उपदिष्ट उन भवनोंकी चारों दिशाओं में योजन प्रमाण जाते हुए एक-एक दिव्य वेदी ( कोट ) पृथक्-पृथक् उन भवनोंको मध्यमें वेष्टित करती है ||२७||
बे कोसा उच्छेहा बेदीरणमकट्टिमाण सव्वाणं । पंच- सयाणि दंडा वासो वर - रयण - छण्णापं ॥ २८ ॥
श्रथं :- उत्तमोत्तम रत्नोंसे व्याप्त ( उन ) सब प्रकृत्रिम वेदियों की ऊँचाई दो कोस और विस्तार पाँचौ धनुष प्रमाण होता है ||२८||
गोउर-दार जुवाओ उवरिम्मि जिनिंद-गेह-सहिदाश्रो ।
भवण- सुर- रक्खिदाश्रो वेदोश्रो तासु सोहति ॥ २६ ॥
१. द. व. क. ज. ठ. सम्मत्ता । २. द. ब. क. ज. ल. भवरासुर-तविनदायो वेदी तेसु ।