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अपमहनियमतिमभावणदेवाण होति भवणाणि । दुगवावालसहस्सा लक्खमधोधो खिदीय गंसा ॥२४॥
२०००/४२०००/१०००००
अपमहद्धिसमजिसमभावणदेवाण वासविस्थारो ।
समचउरस्सा पक्षणा घज्जामपहारसजिया सम्धे ॥२५॥
बहल सिसयाण संखासखेज जोयगा यासे ।
संखेज्जचदभवणेसु भवणदेवा धर्मति संखेना ॥२६॥ संखातीवा सेयं छत्तीसपुरा य होषि संखेमा (?) भमणसरूया एवं वित्थारा होइ जाणिज्जो ॥२७॥
भवणवाणणं सम्मत। कन्नड़ की साड़पत्रीय प्रतियों में इस पाठ की संरचना इस प्रकार है जो पूर्णतः सही है और इसमें भ्रान्ति (?) की सम्भावना भी नहीं है । हाँ, इस पाठ से एक गाथा अवश्य कम हो गई है ।
अप-मह द्धिय-मजिसम-भावण-देवाण होंति भवपाणि । दुग-बाशाल सहस्सा लक्खमयोधो खिदौए गंतुणं ॥२४॥
२००० ४२००० /१०००००
॥ अप्पमहविय-मजिसम-भाषण-घेवाण-णिवास-खेत समतं ॥९॥
समघउरस्सा भरणा वाजमया-वार-बज्जिया सम्वे ।
यहलते ति-सयाणि संखासंखेज जोयणा वासे ॥२५॥
संखेज्ज-रद-भवणेसु भवण देवा घसंति संखेजा।
संखातीवा चासे अच्छती सुरा असंखेज्जा ॥२६॥
भवणसहवं समत्ता १०॥
इस प्रकार कुल २४२ गाथाएँ रह गई हैं। ताड़पत्रीय प्रतियों में १२ गाथाएँ नवीन मिली हैं अतः प्रस्तुत संस्करण में इस अधिकार में २४२+१२-२५४ गाथाएँ हुई हैं।