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तिलोयपणती
[ गाथा : १३-१५
अर्थ :-भवनवासी देबोंके भवनोंकी संख्या क्रमशः ६४ लाख, ८४ लाख, ७२ लाख, छह स्थानोंमें ७६ लाख और ९६ लाख है, इन सबके प्रमाणको एकत्र मिला देनेपर सात करोड़, बहत्तर लाख होते हैं ।।११-१२।।
विशेषार्थ :- असुरकुमारदेवोंके ६४०००००, नागकुमारके ८४०००००, सुपर्णकुमारके ७२०००००, द्वीपकुमारके ७६०००००, उदधिकुमारके ७६०००००, स्तनितकुमारके ७६०००००, विद्य कुमारके ७६०००००, दिक्कुमारके ७६०००००, अग्निकुमारके ७६००००० और वायुकुमार देवोंके १६००००० भवन हैं। इन दस कुलोंके सर्व भवनोंका सम्मिलित योग | ६४ ला० +८४ ला०+ ७२ ला० + (७६ ला० x ६)+६६ लाख= ] ७७२००००० अर्थात् सात करोड़, बहत्तर लाख है।
।। भवनोंकी संख्याका कथन समाप्त हुा ।।४।।
भवनवासी-देवों में इन्द्र संख्या देससु कुलेसुपुह पुह दो दो' इदा हवंति णियमेण । ते एक्करिंस 'मिलिदा बीस विराजंति भूदीहि ॥१३॥
। इंद-पमाणं समत्तं ॥५।।
अर्थ :-भवनवासियोंके दसों कुलोंमें नियमसे पृथक-पृथक् दो-दो इन्द्र होते हैं, वे सब मिलकर बीस हैं, जो अनेक विभूतियोंसे शोभायमान हैं ।।१३।।
॥ इन्द्रोंका प्रमाण समाप्त हुआ ।।५।।
भवनबासी-इन्द्रोंके नाम पढमो हु चमर-णामो इंदो वइरोयणो ति बिदियो य । भूदाणंदो धरणाणंदो 'वेण य वेणुधारी य ॥१४॥
पुण्ण-वसिद-जलप्पह-जलकता तह य घोस-महघोसा । हरिसेणो हरिकतो अमिदादी अभिववाहग्गिसिही ॥१५॥
१. ब. क. दो हो। २. ६. ब. क. ज. ठ. मेलिदा। ३ द. भूदोही। ४. द. वेणु ।