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गाथा : १६-१९ ]
तदिश्रो महाहियारो
अग्गीवाहण-रणामो वेलंब-पभंजणाभिहाणा
य 1
एवं सुरपहुविसु कुलेसु दो-दो कमेरण देविदा ।। १६ ।।
|| इंदाणं - णामारि समत्तारिण || ६ ||
अर्थ :- प्रथम चमर और द्वितीय वैरोचन नामक इन्द्र भूतानन्द और धरणानन्द; बेणु-वेणुधारी; पूर्ण वशिष्ठ; जलप्रभ-जलकान्त, घोष -महाघोष, हरिषेण हरिकान्त, श्रमितगतिअमितवाहन, अग्निशिखी अग्निवाहन तथा वेलम्ब और प्रभंजन नामक ये दो-दो इन्द्र क्रमश: असुरकुमारादि निकायों में होते हैं ।। १४- १६ ।।
11 इन्द्रोंके नामोंका कथन समाप्त हुआ || ६॥ दक्षिणेन्द्रों और उत्तरेन्द्रोंका विभाग
after- इंवा मरो भूदाणंदो य वेणु-पुण्णा य । जलपह-घोसा हरिसेणामिदगदी अग्गिसिहि-वेलंबा ||१७||
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'वइरोप्रणो य धरणाणंदो तह 'बेणुधारी वसिट्ठा । जलकंत- महाघोसा हरिकंतो श्रमिद- श्रग्गिवाहणया ||१८||
तह य पहंजण - णामो उत्तर-इंदा हवंति वह एवे । प्रणिमादि-गुणेहि जुदा मणि- कुंडल-मंडिय- कबोला ॥१६॥
॥ दक्खि उत्तर इंदा गदा ||७||
अर्थ : – चमर, भूतानन्द, वेणु, पूर्ण, जलप्रभ, घोष, हरिषेण श्रमितगति, श्रग्निशिखी और लम्ब ये दस दक्षिरण इन्द्र तथा वैरोचन, धरणानन्द वेणुधारी, वशिष्ठ, जलकान्त, महाघोष, हरिकान्त, श्रमितवाहन, अग्निवाहन और प्रभंजन नामक ये दस उत्तर इन्द्र हैं। ये सभी इन्द्र प्रणमादिक ऋद्धियोंसे युक्त और मणिमय कुण्डलोंसे अलंकृत कपोलोंको धारण करने वाले हैं ।। १७- १६ ।।
।। दक्षिण-उत्तर इन्द्रोंका वर्णन समाप्त हुआ ||७||
१. ब. वइरो प्रो २. द. ब. के. ज. ठ. दार | ३. द. मणिमादिगुणे जुदा, ब. क. ज. ठ. मादिगुणे जुत्ता |