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गाथा : ३१२-३१५ ] विदुनो महाहियारो
[ २५१ (४०००४५)=२०००० कोस अथवा ५००० योजन प्रमाण है । वे जन्म-भूमियाँ ७ । ३ । २ । १ और ५ कोन वाली हैं।
जन्म-भूमियोंके द्वार-कोण एवं दरवाजे एक्क दु ति पंच सत्त य जम्मण-खेत्त सुदार-कोणाणि । तेत्तियमेत्ता दारा सेढीबद्ध पदण्णए एवं ॥३१२।।
॥ १।२।३।५। ७ ।। अर्थ :-जन्म-भूमियोंमें एक, दो, तीन, पांच और सात द्वारकोण तथा इतने ही दरवाजे होते हैं, इसप्रकारकी व्यवस्था केवल श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंमें ही है ।।३१२।।
तिहार-ति-कोणाश्रो इंदय-णिरयाण' जम्म-भूमोनो। णिच्चंधयार-बहुला कत्थुरोहितो प्रणंत-गुणो ॥३१३॥
जम्मण-भूमी गदा ॥१२॥ अर्थ :-इन्द्रक बिलोंकी जन्म-भूमियाँ तीन द्वार और तीन कोनोंसे युक्त हैं । उक्त सम्पूर्ण जन्म-भूमियाँ नित्य हो कस्तुरीसे भी अनन्तगुरिणत काले अन्धकारसे व्याप्त हैं ॥३१३।।
।। इसप्रकार जन्म-भूमियोंका वर्णन समाप्त हुआ ।।१२।।
नरकोंके दुःखोंका वर्णन पावेणं णिरय-बिले जाणं तो' मुहुत्तमत्तण । छप्पजति पाविय प्राकस्सिय-भय-जुदो-होदि ॥३१४॥ भोवीए कंपमाणा चलिदुदुक्खेण "पेल्लियो संतो। छत्तीसाउह-मज्झे पडिणं तत्थ उप्पलइ ॥३१५॥
१. द. ब. क. मिरमाणि, ज.ठ, णिरायाणि । २. क. ज. 3. कछु । ३. द. ताममुत्तरण मेत्ते, ब. क. ज. ठ. ता मुहत्तणं-मेत। ४, ब. होंदि। ५. द. पवियो, ब. पश्चिमो, क. पफिचड़, ज. पश्विमो, ४.पवित।