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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३०६-३११ नरकोंमें दुर्गन्ध अज-ज-महिस-तुरंगम-खरो-मज्जार-मेस-पहुदीएं ।
'कुथिताणं गंधादो णिरए गंधा अणंतगुणा ॥३०॥
अर्थ :-बकरी, हाथी, भंस, घोडा, गधा, ऊँट, बिलाव और मैढ़े प्रादिके सहे-गले शरीरोंकी दुर्गन्धकी अपेक्षा नरकोंमें अनन्तगुणी दुर्गन्ध है ॥३०६।।
जन्म-भूमियोंका विस्तार पण-कोस-बास-जुत्ता होंति जहणम्हि जम्म-भूमीनो। जे? 'उस्सयाणि वह-पण्णरसं च मज्झिमए ॥३१०॥
।५ । ४०० । १०-१५ । प्रर्थ :-नारकी जीवोंकी जन्म-भूमियोंका विस्तार जघन्यतः पांच कोस, उत्कृष्टतः चारसौ कोस और मध्यम रूपसे दस-पन्द्रह कोस प्रमाण वाला है ।।३१०॥
विशेषार्थ :-इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंके ऊपर जो जन्म-भूमियां हैं, उनका जघन्य विस्तार ५ कोस, मध्यम विस्तार १०-१५ कोस और उत्कृष्ट बिस्तार ४०० कोस प्रमाण है।
जन्म-भूमियोंकी ऊँचाई एवं प्राकार जम्मरण-खिदीण उदया रिणय-रिणय-रुवाणि पंच-गुणिदाणि । सत्त-लि-दुगेक्क-कोणा' पण-कोणा होति एदाओ ॥३११॥
। २५ । २०००० । ५०-७५ ॥ ७॥ ३ । २१ । ५ । अर्थ :-जन्म-भूमियोंकी ऊँचाई अपने-अपने विस्तारको अपेक्षा पांच गुनी है। ये जन्मभूमियां सात, तीन, दो, एक और पांच कोन वाली हैं ॥३११॥
विशेषार्य :-जन्म-भूमियोंकी जघन्य ऊंचाई (५४५)=२५ कोस या ६ योजन, मध्यम ऊँचाई (१०४५=५०), ( १५४५)-७५ कोस अथवा १२३ । १८१ योजन और उत्कृष्ट ऊंचाई
१. ६. कुधिता। २. द. ज. क. चउस्सपाणि । ठ, चउसयारिण। ३. द. ब. कोणे।