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गाथा : ३०५ ३०५ ]
विदुम महाहियारो
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अर्थ :--- इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंके ऊपर अनेक प्रकारको तलवारोंसे युक्त, भीतर गोल और अधोमुखकण्डवाली जन्म भूमियाँ हैं । वे जन्म भूमियाँ धर्मा पृथिवीसे तीसरी पृथिवी पर्यन्त उष्ट्रिका, कोयली, कुम्भी, मुगलिका, मुद्दगर, मृदंग और नालीके सहश हैं ।।३०३-३०४।।
गो-हत्थि तुरय-भत्था 'अज्जप्पुड-अंबरीस - दोणीश्रो । च-पंचमढवी श्रायारो जम्म-भूमोणं
।।३०५ ।।
अर्थ :- चौथी और पांचवीं पृथिवीमें जन्म भूमियोंके श्राकार गाय, हाथी, घोड़ा, भस्त्रा, अब्जपुट, अम्बरीष (भड़भू जाके भाड़ ) प्रोर द्रोणी ( नाव ) जैसे हैं ||३०५ ||
भल्लारि-'मल्लय - पत्थो केयूर मसूर साणय- किलिजा । धय-दीव - 'चक्कया यस्तिगाल-सरिसा महाभीमा ||३०६ ॥
अज्ज-खर- करह - सरिसा संदोल प्र-रिव-संणिहायारा | छस्सतम- पुढवीणं "दुरिक्ख - णिज्जा महाघोरा
करवत्त- सरिच्छा अंते बट्टा समंतदो' वज्जमईग्रो णारय- जम्मरण-भूमीश्र
॥३०७॥
अर्थ :- छठी और सातवीं पृथिवीको जन्म भूमियाँ झालर (वाद्य विशेष ), मल्लक ( पात्रविशेष ), बांसका बना हुआ पात्र, केयूर, मसूर, शासक, किलिंज ( तृरणको बनी बड़ी टोकरी ), ध्वज, द्वीपी, चक्रवाल, शृगाल, अज, खर, करभ, संदोलक ( भूला ) और रीछके सदृश हैं। ये जन्म-भूमियाँ दुष्प्रय एवं महाभयानक हैं ||३०६-३०७ ।।
ठाम्रो । भीमाश्रो ॥ ३०८ ॥
श्रर्थ :-- नारकियोंकी ( उपर्युक्त ) जन्म भूमियाँ अन्तमें करोंतके सदृश, चारों ओरसे गोल, वज्रमय, कठोर और भयंकर है ॥ ३०८ ॥
१. द. ब. क. ज. ठ. अंतंपुढ २. ज. ठ. मल्लरि मल्लय, क. मल्लय पत्री । ३. द. चक्कवायसीगाल 1 ज. क. ल. चक्कवायासीगाल : ब. चक्कचावासीगाल | ४. क. ज. ठ. सरिया संदोलन | ५. द. पिज्जा । ६. द. समंतदाऊ । ७. . . क. ज. द. भीमाए ।