________________
२३२ ]
तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २५२-२५४ .. : तीसरी पृथिवीके संज्वलित इन्द्रकमें शरीरका उत्सेध उनतीस धनुष, दो हाथ और तीनसे भाजित चार (१३) अंगुल प्रमाण है ।।२५१॥
एक्कतीर दंडा एसो हत्यो हो 'सनिय युद्धनीर । संपज्जलिदे' चरिमिंदयम्हि 'गारइय उस्सेहो ॥२५२॥
घ ३१, ह । अर्थ :- तीसरी पृथिवीके संप्रज्वलित नामक अन्तिम इन्द्रकमें नारकियोंके शरीरका उत्सेध इकतीस-धनुष और एक हाथ प्रमाण है ।।२५२।।
चौथी पृथिवीमें उत्सेधकी हानि-वृद्धिका प्रमाण चउ दंडा इगि हत्यो पव्याणि वीस-सत्त-पविहत्ता । चउ भागा तुरिमाए पुढवीए हारिण-बड्डीओ ॥२५३।।
ध४. ह १, अं २० भा
।
अर्थ :- चौथी पृथिवीमें चार धनुष, एक हाथ, बीस अंगुल और सातसे भाजित चार-भाग प्रमारण हानि-वृद्धि है ।।२५३।।.
चौथी पृथिवीमें पटल क्रमसे नारकियोंके शरीरका उत्सेध
पणतीसं दंडाई हत्थाई दोण्णि बीस-पवारिण । सत्त-हिवा चउ-भागा उदयो प्रार-ट्टिवाण जीवाणं ॥२५४॥
ध ३५, ह २, अं २० भा । अर्थ :--पार पटलमें स्थित जीवोंके शारीरका उत्सेध पैतीस धनुष, दो हाथ, बीस अंगुल और सातसे भाजित चार-भाग-प्रमाण है ॥२५४।।
१.ब. तदिह ।
२. द. ब. क. उ. संजलिदे।
३. द. ब. क. ठ. पारइया ।