________________
२२६ ]
तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २२८-२३१
वारणासपाणि छ च्चिय दो हत्था तेरसंगलाणि पि । वक्कंत-णाम-पडले उच्छेहो पढम-पुढवीए ॥२२॥
दं ६, ह २ । अं १३ ।
अर्थ :- पहली पृथिवीके वक्रान्त पटलमें शरीरका उत्सेध छह धनुष, दो हाथ और तेरह अंगुल है ।।२२८॥
सत्त य सरासणाणि अंगलया एक्कवीस-पच्चद्ध। पडलम्मि य उच्छेहो होदि अवयकंत-णामम्मि ॥२२॥
दं ७, अं२१३ । मयं :-अवक्रान्त नामक पटलमें सात धनुष और साढ़े इक्कीस अंगुल प्रमाए शरीरका उत्सेध है ॥२२६।।
सत्त विसिखासणाणि हत्थाई तिण्णि छच्च अंगुलयं । चरमिदम्मि उदो विक्कते पढम-पुढमीए ॥२३०॥
दं ७, ह ३, अं६। अर्थ :-पहली पृथिवीके विक्रान्त नामक अन्तिम इन्द्रकमें शरीरका उत्सेध सात धनुष, तीन हाथ और छह अंगुल है ।।२३०।1
दूसरी पृथिवीमें उत्सेधकी वृद्धिका प्रमाण दो हत्था वीसंगल एक्कारस-भजिव-वो वि पध्वाई। वंसाए वढीप्रो मुह-सहिदा होंति उच्छेहो ॥२३१॥
ह २, अं२० भा १३। अर्थ :---वंशा पृथिवीमें दो हाथ, बीस अंगुल और ग्यारहसे भाजित दो-भाग प्रमाण प्रत्येक पटलमें वृद्धि होती है । इस वृद्धिको मुख अर्थात् पहली पृथिवीके उत्कृष्ट उत्सेध-प्रमाणमें उत्तरोत्तर मिलाते जानेसे क्रमश: दूसरी पृथिवीके प्रथमादि पटलोंमें उत्सेधका प्रमाण निकलता है ।।२३।।