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________________ गाथा : २००-२०३ ] विदुनो महायिारो [ २१५ अर्थ :-चौथी पृथिवीमें नारकी जीव जगच्छणीके असंख्यातभाग प्रमाण हैं, बह प्रमाण भी जगच्छरणीमें जगच्छणीके आठवें वर्गमूलका भाग देने पर जो लब्ध प्रावे, उतना है ॥१६॥ थेणी श्रेणीका प्राठवां वर्गमूल-चौथी पृ० के नारकियोंका प्रमाण पंचम-खिदि-णारइया सेढीए असंखभाग-मेत्ते थि । सो सेढीए छट्ठम-मलेणं भाजिदा सेढी ॥२००।। अर्थ :–पाँचवीं पृथिवीमें नारकी जीव जगच्छ्रणीके असंख्यातवें-भाग प्रमाण होकर भी जगच्छणीके छठे वर्गमूलसे भाजित जगच्छृणी प्रमाण हैं ॥२००।। श्रेणी श्रेणीका छठा वर्गमूल पाँचवीं पृ० के नारकियोंका प्रमाण । मघवीए णारइया सेढीए असंखभाग मेत्ते वि। सेढीए तविय-मलेण 'हरिद-सेढी सो रासी ॥२०१॥ अर्थ :-मघवी पृथिवीमें भी नारको जीव जगच्छ्रणीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं, बह प्रमाण भी जगच्छेणीमें उसके तीसरे वर्गमूलका भाग देनेपर जो लञ्च प्रावे, उतना है ।।२०१।। श्रेणी: श्रेणीका तीसरा वर्गमूल = छठी पृ० के नारकियोंका प्रमाण । सत्तम-खिदि-णारइया सेढीए असंखभाग-मेत्ते यि । सेढोए बिदिय-मूलेण हरिद-सेढीन सो रासी ॥२०२॥ । एवं संखा समत्ता ।।२।। अर्थ :-सातवीं पृथिवीमें नारकी जीव जगच्छणीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं, वह राशि जगच्छ णीके द्वितीय वर्गमूलसे भाजित जगच्छणी प्रमाण है ॥२०२।। श्रेणी: श्रेणीका दुसरा वर्गमूल सातवों पृ० के नारकियों का प्रमाण । इसप्रकार संख्याका वर्णन समाप्त हुआ 11२।। १.द, ब. क. हरिदा सेतोय ।
SR No.090504
Book TitleTiloypannatti Part 1
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size8 MB
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