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तिलोयपणाची
[ गाथा : २०३-२०६ पहली पृथिवीमें पटल क्रमसे नारकियोंकी प्रायुका प्रमाण णिरय-पदरेसु' पाऊ सौमंतादीसु दोसु संखेम्जा । तदिए संखासंखो ससु असंखो तहेव सेसेसु ॥२०३॥
७ । ७ । ७ रि । १० । रि । से । रि' मर्थ :-नरक-पटलोंमेंसे सीमन्त आदिक दो पटलोंमें संख्यात वर्षकी प्रायु है। तीसरे पटलमें संख्यात एवं असंख्यात बर्षकी आयु है और पागेके दस पटलोंमें तथा शेष पटलोंमें भी असंख्यात वर्ष प्रमाण ही नारकियोंकी प्रायु होती है ।।२०३।।
एक्कत्तिणि य सत्तं वह सत्तारह दुवीस तेत्तीसा । रयणादी-चरिमिंदय'-जेडाऊ उवहि-उवमाणा ॥२०४॥
१ । ३ । ७ । १० । १७ । २२ । ३३ । सागरोवमाणि । अर्थ :-रत्नप्रभादिक सातों पृथिवियों के अन्तिम इन्द्रक बिलोंमें क्रमश: एक, तीन, सात, दस, सत्तरह. बाईस और तैतीस सागरोपम-प्रमाण उत्कृष्ट प्रायु है ।।२०४।।
दस-णदि-सहस्साणि ग्राऊ अवरो वरो य सोमंते । धरिसाणि णवि-लक्खा णिर-इंदय-ग्राउ-उपकस्सो ॥२०५॥ .
. १०००० । ६०००० । ६०००००० । अर्थ :-सीमन्त इन्द्रकमें जघन्य प्रायु दस हजार ( १०००० ) वर्ष और उत्कृष्ट प्रायु नब्ब ( २०००० ) हजार वर्ष-प्रमाण है। निरय इन्द्रकमें उत्कृष्ट प्रायुका प्रमाण नव्वं लाख (९०००००) वर्ष है ।।२०।।
रोरुगए जेट्ठाऊ संखातीदा हु पुन्व-कोडीयो। भंतस्सुक्कस्साऊ सायर-उवमस्स दसमंसो ॥२०६॥
पुव्व । रि ! सा । । अर्थ :-रोरुक इन्द्रकमें उत्कृष्ट आयु असंख्यात पूर्वकोटी और भ्रान्त इन्द्रको सागरोपमके दसवें-भाग ( सागर ) प्रमाण उत्कृष्ट प्रायु है ।।२०६।।
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२. द. २।७। ७०।१०।०॥
३. ब. परमिदिय ।
१. द. ज.क. ठ, पदरस्स । ४. द. ब. माउक्कस्सो ।