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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : १८९-१९१
धर्मादिक छह पृथिवियोंमें प्रकीर्णक- बिलोंके स्वस्थान एवं परस्थान अन्तरालोंका प्रमाण
छक्कदि हिदेवकणउदी - कोसोणा छस्सहस्स-पंच-सया ।
जोयणया धम्माए पइण्णयाणं हवेदि विच्चालं ॥ १६६ ॥
६४६६ । को १ । १ ।
श्रयं :- घर्मा पृथिवीमें प्रकीर्णक बिलोंका अन्तराल, इक्यानबे में छहके वर्गका भाग देने पर जो लब्ध प्रावे, उतने कोस कम छह हजार पाँचसी योजन प्रमाण है ॥ १८९॥
विशेषार्थ : - योजन ६५००
पृथिवीकी मोटाई ५०००० -- - २००० = ७६००० यो० ३२) × ६३ = ६४६६६४ योजन या ६४६६ योजन १३ अन्तराल है ।
x १ ) = ६४९९ यो० १३ कोस, अथवा धर्मा : (७८००० - १३) + ' (००००. कोस पहली पृथिवीमें प्रकीर्णक बिलोंका
वरणजदी - जुद-व-सय-दु-सहस्सा जोयस्पाणि बसाए । तिथि सारिंग दंडा उड्ढे पइण्णयाण विच्चालं ॥ १६०॥
२६६६ | दंड ३०० ।
अर्थ :- वंशा पृथिवी में प्रकीर्णक बिलोंका ऊर्ध्वग अन्तराल दो हजार नौ सौ निन्यानबे योजन और तीनसी धनुष प्रमाण है ।। १९० ॥
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२००० = 30000.
विशेषार्थ :- ३२००० (xx २४) (११ - १ ) – (300 *) × १० = २६६६६४] योजन या २६६६ यो० ३०० दण्ड वंशा पृथिवीमें प्रकीर्शक विलोंका श्रन्तराल है ।
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प्रवृत्तालं दुसयं ति सहस्स- जोयरणारिप' मेघाए । वरण-सारिण धणू उठेण पइण्णयारण विच्चालं ॥। १६१ ॥
३२४८ | दंड ५५०० ।
अर्थ :- मेघा पृथिवीमें प्रकीकि बिलोंका ऊर्ध्वग अन्तराल तीन हजार दो सौ अड़तालीस योजन र पाँच हजार पाँचसौं धनुष हैं ।।१६१॥
१. द. जोया ।