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गाथा : १८ ]
विदुश्रो महाहियारो
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पहली धर्मापृथिवीकी १५०००० योजन और वंशाकी ३२००० योजन प्रमाण मोटाई है । इन दोनोंका योग २१२००० योजन हुआ, इसमेंसे चित्रा पृथिवीकी मोटाई १००० यो०, पहली पृथिवीके नीचे १००० योजन और दूसरी पृथिवी के ऊपरका एक हजार योजन इसप्रकार ३००० योजन घटा देनेपर ( २१२००० - - ३००० ) = २०६००० योजन अवशेष रहे, इनको एक राजमेंसे घटा ( १ राजू – २०९००० ) कर जो अवशेष रहे वही पहली पृथिवीके अन्तिम और दूसरी पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलों का परस्थान अन्तराल है ।
वंशा पृथिवीके नीचेका १००० योजन + मेघा पृथिवीके ऊपरका १००० योजन = दो हजार योजनोंको मेघा पृथिवीकी मोटाई ( २८००० योजनों ) मेंसे कम करदेने पर ( २८०० २०००) २६००० योजन श्रवशेष रहे। इन्हें एक राजू में से घटा देनेपर ( १ राजू २६००० ) जो अवशेष रहे, वही वंशा पृथिबीके अन्तिम श्रेणीबद्ध और मेघा पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंका परस्थान अन्तराल है ।
अन्जना पृथिवीकी मोटाई २४००० योजन है । २४००० २००० = २२००० योजन कम एक राजू ( १ राजू - २२००० यो० ) प्रमाण मेघा पृथिवीके अन्तिम श्रेणीबद्ध और अञ्जना पृथिवीके आदि श्रेणीबद्ध बिलोंका परस्थान अन्तराल है ।
अरिष्टा पृथिवीकी मोटाई २०००० योजन १८००० योजन अञ्जनाके अन्तिम और अन्तराल है ।
२००० यो० = १८०००। १ राजू - अरिष्टाके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंका परस्थान
मघवी पृथिवीकी मोटाई १६००० योजन अरिष्ट्रा के अन्तिम श्रौर मत्रवी अन्तराल है ।
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२०००-१४००० योजन । १ राजू - पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंका
१४०००
परस्थान
गा० १६६ में छठी पृ० के अन्तिम इन्द्रक लल्लेक और सातवीं पृ० के अवधिस्थान इन्द्रकका परस्थान अन्तराल १ राजू ८००० योजन + ४६६६३ योजन कहा गया है। इसमेंसे एक योजना का भाग ( दे यो० ) कम करदेने पर ( १ राजू - ८०००+४१९९३ १ ) = १ राजू - ८००० + ४६६६१ योजन अर्थात् १ राजू - ३००० योजन छठी पृथिवीके सातवीं पृथिवी प्रथम श्र ेणीबद्ध बिलका परस्थान अन्तराल है।
अन्तिम और
|| श्रेणीबद्ध बिलोंके अन्तरालका वर्णन समाप्त हुआ ||