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तिलोयपत्ती
[ गाथा : १७६-१७८ अर्थ:-धूमप्रभाके इन्द्रक बिलोंका अन्तराल चार हजार चार सौ निन्यानबै योजन और पाँचसौ दण्ड प्रमाण है ॥१७५।।
२०००० - २०००)x४–(३४५) =४४६ विशेषार्थ :-( २००००--
योजन अथवा ४४६६ (५-१)४४ योजन ५०० धनुष अन्तराल है ।
पांचवीं और छटी पृथिवीके इन्द्रकोंका परस्थान अन्तराल चोइस-सहस्स-जोयण-परिहीणो होदि केवलो रज्जू । तिमिसिदयस्स हिम-इंदयस्स दोण्हं पि विच्चालं ॥१७६॥
छ । रिए । जो १४००० । अर्थ : - पाँचवीं पृथिवीके अन्तिम इन्द्रक तिमिस्र और छठी पृथिवीके प्रथम इन्द्रक हिम, इन दोनों बिलोंका अन्तराल चौदह हजार योजन कम एक राजू अर्थात् १ राजू – १४००० योजन प्रमाण है ।।१७६।।
छठी पृथिबीके इन्द्रकोंका स्वस्थान अन्तराल अट्ठाणउदी णव-सय-छ-सहस्सा 'जोयणाणि मघवीए। पणवण्ण-सयाणि धणू पत्तक्कं इंदयाण विच्चालं ।।१७७॥
जो ६६६८ । दंड ५५०० । अर्थ : मघवी पृथिवीमें प्रत्येक इन्द्रकका अन्तराल छह हजार नौ सौ अट्ठानबै योजन और पाँच हजार पाँच सौ धनुष है ॥१७७॥ ... मिला:.. ( १६००० - २००१) ४४-४३)= ६६६८९ योजन अथवा
(३-१)x४ ६९९८ योजन ५५०० धनुष अन्तराल है ।
छठी और सातवीं पृथिवीके इन्द्रकोंका परस्थान अन्तराल 'छद्रुम-खिदि-चरिमिवय-प्रवहिट्ठाणाण होइ विच्चालं । एक्को रज्जू ऊणो जोयण-ति-सहस्स-कोस-जुगलेहिं ॥१७॥
। रिण । जो ३००० । को २ ।
१. द. ब. क. ज. ठ. जोयणादि । २. द. छठ्ठम ।