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गाथा : १७३ १७५ ]
विदुधो महाहियारो
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अर्थ : तीसरी पृथिवीका अन्तिम इन्द्रक संप्रज्वलित और चौथी पृथिवीका प्रथम इन्द्रक आर, इन दोनों इन्द्रक बिलोंका अन्तराल बाईस हजार योजन कम एक राजू अर्थात् १ राजू - २२००० योजन प्रमाण है ।। १७२ ।।
चौथी पृथिवीके इन्द्रकोंका स्वस्थान अन्तराल
तिणि सहस्सा 'छस्सय पणसट्ठी - जोयणाणि पंकाए । पण्णत्तरि-सय-दंडा पत्तेक्कं इंदयाण विचलं ॥१७३॥
जो ३६६५ । दंड ७५०० ।
अर्थ :- पंकप्रभा पृथिवीके इन्द्रक बिलोंका अन्तराल तीन हजार छसौ पेंसठ योजन और सात हजार पाँचसी दण्ड प्रमाण है ।। १७३ ।।
(२४००० – २००० ) × ४ – ( विशेषार्थ :(७- १) ४४ ३६६४ पोज ७५० अनुषप्रसाल है ।
×७ )
= ३६६५१५ योजन
चौथी और पांचवीं पृथिवीके इन्द्रकोंका परस्थान अन्तराल
एक्को हवेदि रज्जू अट्ठरस - सहस्स जोयरण - विहीणा । खडखड-तमिदयाणं दोन्हं विरुचाल - परिमाणं ॥ १७४॥
७। रिण । जो १८००० ।
अर्थ :- चौथी पृथिवीके अन्तिम इन्द्रक खड़खड़ और पाँचवीं पृथिवीके प्रथम इन्द्रक तम, इन दोनोंके अन्तरालका प्रमाण अठारह हजार योजन कम एक राजू अर्थात् १ राजू – १८००० योजन है ।। १७४ ।।
पाँचवीं पृथिवीके इन्द्रकोंका स्वस्थान अन्तराल
चत्तारि सहस्वाणि च सय णवणउदि जोयणाणि च । पंच-सयाणि धूमपहा- इंदयाण विच्चालं ॥ १७५ ॥
दंडा
जो ४४६६ | दंड ५०० ।
१. द. ब. क. ज. ठसट्टी । २. द. व. जोयरण विद्वीणा ।
अथवा