________________
गाथा : १६३-१६४ ] विदुनो महायिारो
छठी पृथिवीके इन्द्रक बिलोंका ऊर्ध्व अन्तराल - = (१६००० २०००) (१४३) = ६९६८ योजन। मातवीं पृथिवीमें इन्द्रक एवं श्रेणीबद्ध बिलोंके अधस्तन और
उपरिम पृथिवियोंका बाहल्य सत्तम-खिदीन बहले इंदय-सेढीण बहल-परिमाणं ।
सोधिय-दलिदे हेट्ठिम-उबारम-भागा हवंति एदाणं ॥१६३।।
अर्थ :-- सातवीं पृथिवीके बाहल्यमेंसे इन्द्रक प्रौर श्रेणीबद्ध बिलोंके बाहुल्य प्रमाएको घटाकर अवशिष्ट राशिको प्राधा करनेपर क्रमशः इन इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलोंके ऊपर-नीचेकी पृथिवियोंकी मोटाईके प्रमाण निकलते हैं ।।१६३।
विशेषार्थ :-०११-१=३६६ योजन सातवीं पृथिवीके इन्द्रक बिलके नीचे और ऊपरकी पृथिवीका बाहल्य ।
८०००=३६६६ योजन सातवों पृथिवीके श्रेणीबद्ध बिलोंके ऊपर-नीचेकी पृथिवी का घाहल्य । पहली पृथिवीके अन्तिम और दूसरी पृथिवीके प्रथम इन्द्रकका परस्थान अन्तराल
पढम-बिदीयवणीणं' रुदं सोहेज्ज एक्क-रज्जूए ।
जोयरण-ति-सहस्स-जुदे होदि परट्ठाण-विच्चालं ॥१६४॥ अर्थ : पहली और दूसरी पृथिवीके बाहुल्य प्रमाणको एक राजूमेंसे कम करके अवशिष्ट राशिमें तीन हजार योजन घटानेपर पहली पृथिवीके अन्तिम और दूसरी पृथिवीके प्रथम बिलके मध्यमें परस्थान अन्तरालका प्रमाण निकलता है ।।१६४।।
विशेषार्थ :-पहली पृथिवीकी मोटाई १८०००० योजन और दूसरी पृथिवीकी मोटाई ३२००० योजन प्रमाण है । इस मोटाईसे रहित दोनों पृथिवियोंके मध्यमें एक राजू प्रमाण अन्तराल है । यद्यपि एक हजार योजन प्रमाण चित्रा पृथिवीकी मोटाई पहली पृथिवीकी मोटाई में सम्मिलित है, परन्तु उसको गणना ऊर्ध्व लोककी मोटाई में की गई है, अतएव इसमेंसे इन एक हजार योजनोंको कम
-
-
.
१. द.ब. पढम-खिदीयवाणी ।