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गाथा : १५७ ]
छठी पृथिवी
सातवीं पृथिवी
विस्तार इन्द्रक विस्तार इन्द्रक विस्तार
१४७५००० यो० तम
८३३३३३३ यो हिम
३७५००० यो अवधि १००००० घो
I
स्थान
- १३८३३३३३ भ्रम
४१६६६,,, वर्दल २८३३३३३,
१२९१६६६३ झस
६५००००
लल्लंक १६१६६६३
१२००००० श्रन्ध ! ५५८३३३३ तमक ११०५३३३३, तिमिस्र ४६६६६६६,,
खाड १०१६६६६३
खलखल ६२५००० यो०
इन्द्रक विस्तार
आर
मार
चौथी पृथिवी
तार
तत्व
ג,
21
विदु महाहियारो
इन्द्रक
पाँचवीं पृथिवी
23
१. ब. क. सत्तवि ।
[ १९५
"
इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक-बिलोंके बाहुल्यका प्रमाण
एक्का हिय-खिदि-संखं तिय-चउ सत्तेहि' गुणिय छन्भजिदे । कोसा इंदय-सेढी पइरणयासं पि बहलत्तं ॥१५७॥
अर्थ : एक अधिक पृथिवी संख्याको तीन, चार और सातसे गुणा करके छहका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतने कोस प्रमाण क्रमशः इन्द्रक, श्र ेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य होता है || १५७ ।।
विशेषार्थ :- नारक पृथिवियोंकी संख्या में एक-एक धन करके तीन जगह स्थापन कर क्रमश : तीन, चार और सातका गुणा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें छहका भाग देनेसे इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहुल्य ( ऊँचाई ) प्राप्त होता है । यथा
[ चार्ट पृष्ठ १६६ पर देखिये ]