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गाथा : १५०-१५२ ] . विदुप्रो महाहियारो
[ १६१ विशेषार्थ :--८३३३३३३ --- ६१६६६३-७४१६६६३ योजन विस्तार भ्रम नामक द्वितीय इन्द्रकका है।
छज्जोयण-लक्खाणि पण्णास-सहस्स-समाहियाणि च । धूमप्पहावणीए झस-इंदय-रद-परिमाणा ॥१५०॥
६५०००० । प्रथं :-धूमप्रभा (पाँचवीं) पृथिवीमें झस नामक तृतीय इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण छह लाख, पचास हजार योजन है ।। १५०।।
विशेषार्थ :-७४१६६६ - ६१६६१ == ६५.०० योजन सिम्तार झम मापन तृतीय इन्द्रक बिलका है।
लक्खाणि पंच जोयण-अडवण्ण-सहस्स-ति-सय-तेत्तीसा । 'एक्क-कला अधिदय-वित्थारो पंचम-खिदीए ॥१५१॥
५५६३३३ । पर्थ :-पांचवीं पृथिवीमें अन्ध नामक चतुर्थ इन्द्रकका विस्तार पांच लाख, अट्ठावन हजार, तीनसौ तैतीस योजन और एक योजनके तीसरे-भाग प्रमाण है ।।१५१।।
विशेषार्थ:-६५०००० - ६१६६६३=५५८३३३३ योजन विस्तार अन्ध नामक चतुर्थ इन्द्रक बिलका है।
चज-जोयण-लक्खारिण छासहि-सहस्स-छ-सय-छासट्ठी । दोणि कला तिमिसिंदय-रुदं पंचम-धरित्तीए ।।१५२॥
अर्थ :–पाँचवीं पृथिवीमें तिमिस्र नामक पांचवें इन्द्रकका विस्तार चार लाख छयासठ हजार छहसौ छयासठ योजन और एक योजनके तीन-भागोंमेंसे दो-भाग प्रमाण है ॥१५२।।
विशेषार्थ :-५५८३३३, - ६१६६६३ - ४६६६६६, योजन विस्तार तिमिस्र नामक पाँचवें इन्द्रक विलका है।
१. द. ब. 3. ज, एककलार्यदिदय । क. दिदिय ।