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गाथा : १३० १३२ ]
विशेषार्थ : - २६६६६६६
नामक नवें इन्द्रक बिलका है ।
चवीसं लक्खाणि तैसीदि-सहस्स-ति-सय-तेत्तीसा ।
एक्क - कला ति वित्ता लोलग णामस्स' वित्थारो ॥१३०॥
२४८३३३३१ ।
अर्थ :--- लोलक नामक दसवें इन्द्रकका विस्तार चोबीस लाख, तेरासी हजार तीनसो तेतीस योजन और एक योजनके तीसरे भाग प्रमाण है ।। १३० ॥
९१६६६= २४८३३३३३ योजन विस्तार लोलक नामक
विशेषार्थ : --- २५७५०००
दसवें इन्द्रकका है ।
विदु महाहियारो
[ १८५
६१६६६३२५७५००० योजन प्रमाण विस्तार लोल
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तेवीसं लक्खाणि इगिणउदि - सहस्स छ-सय-छासट्टि । दोणि कला तिय-भजिदा रुंदा थरगलोलगे होंति ।।१३१।। २
२३६१६६६ |
अर्थ :- स्तनलोलक नामक ग्यारहवें इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख, इक्यानबे हजार छहसी छयासठ योजन श्रीर योजनके तीन भागों मेंसे दो भाग प्रमाण है ।। १३१ ।।
विशेषार्थ :- २४८३३३३३ नामक ग्यारहवें इन्द्रक बिलका है ।
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प्रथम इन्द्रक बिलका है ।
९१६६६३ – २३६१६६६३ योजन विस्तार स्तनखोलक
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तीसरी पृथिवीके नव इन्द्रकों का पृथक् पृथक् विस्तार
तेवीस लक्खाणि जोमरण - संखा य तधि-पुढबीए । पढमदयम्मि वासो गादथ्यो तत्तणामस्स ॥१३२॥
२३०००००१
अर्थ :- तीसरी पृथिवीमें तप्त नामक प्रथम इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख योजन प्रमाण जानना चाहिए || १३२ ॥
विशेषार्थ : -- २३९१६६६३ - १६६६३
१. द. लोलग णामास । २. द. पुस्तक एव ।
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२३००००० योजन विस्तार तप्त नामक