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विशेषार्थं :- ३५८३३३३३ नामक बारहवें इन्द्रक बिलका है ।
चोत्तीसं लक्खाणि जोयण-संखा य पदम पुढवीए । 'विषकंत - णाम- इंदय - बित्थारो एत्थ णादथ्यो ।। १२० ||
३४००००० ।
अर्थ :- पहली पृथिवीमें विक्रान्त नामक तेरहवें इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख योजन प्रमारण जानना चाहिए ।। १२० ।।
विशेषार्थ : - ३४६१६६६६ तेरहवें इन्द्रक बिलका है ।
तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : १२०-१२२
- ९१६६६३ - ३४९१६६६ योजन विस्तार श्रवक्रान्त
दूसरी पृथिवीके ग्यारह इन्द्रककों का पृथक् पृथक् विस्तार तेत्तीसं लक्खाणि श्रट्ट - सहस्साणि ति-सय-तेत्तीसा | एक्क-कला बिaियाए 'थण- इंदय-रुंद परिमाणं ॥ १२१ ॥
विशेषार्थ : ३४००००० स्तन नामक प्रथम इन्द्रक बिलका है ।
३३०८३३३१ ।
प्रर्थ:-दूसरी पृथिवीमें स्तन नामक प्रथम इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण तेतीस लाख, श्राठ हजार तीनसौ तैंतीस योजन और योजनके तीन भागोंमेंसे एक भाग है ।। १२१ ।।
- ε१६६६९ = ३३०८६३३९ यो० विस्तार दूसरी पृथिवीके
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- ६१६६६३ – ३४००००० योजन विस्तार विक्रान्त नामक
विशेषार्थ : ३३०८३३३
बत्तीसं लक्खाणि छहसय- सोलस - सहस्स - छासट्टी |
वोणि कला ति-विहत्ता वासो तण इंदए होदि ।। १२२ ।।
३२१६६६६ ।
अर्थ :- तनक नामक द्वितीय इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख, सोलह हजार, बहसों छयासठ योजन और एक योजनके तीन भागों में से दो भाग प्रमाण है ।। १२२ ।।
१६६६३२१६६६६ योजन विस्तार तनक नामक
द्वितीय इन्द्रक बिलका है ।
१. द. ब. विक्कलं रणामा इय- वित्थारो | २. द, थलइंदय । ठ. ज. धरण वय |