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विदुयो महाहियारो
२६२ । २०४ । १३२ । ७६ । ३६ । १२
अर्थ : - दोसौ बानवे, दोसौ चार, एकसौ बत्तीस छयत्तर, छत्तीस और बारह, इस प्रकार रत्नप्रभादि छह पृथिवियोंमें भाविका प्रमाण है ||७४ ||
गाथा : ७५-७७ ]
विशेषार्थ :- प्रत्येक पृथिवीके अन्तिम पटलकी दिशा - विदिशाओंके श्रीबद्ध बिलोंका प्रमाण क्रमशः २६२, २०४, १३२, ७६, ३६ और १२ है । श्रादि (मुख) का प्रमाण भी यही है । ग-पंच-तियाणि होति गच्छाणि । सभ्यम्बुठयोगं
७९॥
तेरस एक्कारस - णव सग-पं सव्वत्युत्तरम सेठि
अर्थ : सब पृथिवियोंके ( पृथक्-पृथक् ) श्री धनको निकालनेके लिए गच्छका प्रमाण तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पाँच श्रौर तीन है; चय सर्वत्र भाव ही हैं 11७५।२
प्रथमादि-पृथिवियोंके श्रेणीबद्ध बिलोंकी संख्या निकालने का विधान
पद-वगं चय-पहदं' दुगुणिद-गच्छेण गुणिद-मुह-त्त ं । बद-हद-पद-विहीण दलिदं जाणेज्ज संकलिवं ॥ ७६ ॥
म :--- पदके वर्गको चयसे गुणा करके उसमें दुगुने पदसे गुणित मुखको जोड़ देनेपर जो राशि उत्पन्न हो उसमें से चयसे गुणित पदप्रमाएको घटाकर शेषको आधा करनेपर प्राप्त हुई राशि के प्रकारण संकलित श्र ेणीबद्ध बिलोंकी संख्या जानना चाहिए ||७६ ।।
प्रथमादि- पृथिवियोंमें श्रेणीबद्ध - बिलोंकी संख्या
चत्तारि सहस्सा रिंग चउस्सया बीस होंति पढमाए ।
दि-गवा बिविधाए दु-सहस्सा 'छस्सारिण चुलसोदी ॥७७॥१
४४२० । २६८४
धर्म :- पहली पृथिवीमें चार हजार चार सौ बीस और दूसरी पृथिवीमें दो हजार छहसी चौरासी श्रीबद्ध बिल हैं ।।७७ ।
विशेषार्थ :- (१३८ ) + (१३४२x२९२ ) – ( ८x१३ )
[ १६३
पहली पृथिवीगत श्र ेणीबद्ध - बिलोंका कुल प्रमाण
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८८४०
१. द. क. चयपदं । २. द. न. मुवजुतं । ३. ब. षट्टि । ऊ घड प्रधिप ।
= ४४२०
४. ब. इसबाण ।