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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ४३-४६ अर्थ :--प्रथम सीमन्तक तथा द्वितीयादि निरय, रोरुक, भ्रान्त, उद्भ्रान्त, संभ्रान्त, असंभ्रान्त, विभ्रान्त, तप्त, त्रसित, वान्त, अवक्रान्त और विक्रान्त इसप्रकार थे तेरह इन्द्रक बिल प्रथम पृथिवीमें हैं । स्तनक, तनक, मनक, वनक, घात, संघात, जिह्वा, जिह्वक, लोल, लोलक और स्तनलोलुक नामवाले ग्यारह इन्द्रक-बिल दूसरी पृथिवीमें हैं ।।४०-४२।।
तत्तो' तसिदो तवणो तावण-रणामो णिदाह-पज्जलिदो। उज्जलिवो संजलिदो संपज्जलिदो य तदिय-पुढवीए ।।४३।।
मर्थ : - तप्त, त्रस्त, तपन, तापन, निदाघ, प्रज्वलित, उज्ज्वलित, संज्वलित और संप्रज्वलित ये नौ इन्द्रक बिल तीसरी पृथिवीमें हैं ।।४३॥
आरो' मारो तारो तच्चो तमगो तहेव खाडे य । खडखड-णामा तुरिमक्खोणीए इंदया सत्त ।।४४।।
प्रर्थ :-पार, मार, तार, तत्त्व ( चर्चा ) तमक, खाड और खड़खड़ नामक सात इन्द्रक बिल चौथी पृथिवी में हैं ॥४४।।
तम-भम-झस-प्रद्धाविय-तिमिसो धूम-पहाए छट्ठीए । हिम बद्दल-लल्लंका सत्तम-प्रवणीए अवधिठाणो ति ।।४५॥
५।३।१!
अर्थ :-तमक, भ्रमक, झषक, अन्ध और तिमिस्र ये पाँच इन्द्रक बिल धूमप्रभा पृथिवीमें हैं । छठी पृथिवीमें हिम, वर्दल और लल्लक इसप्रकार तीन तथा सातवीं पृथिवी में केवल एक अवधिस्थान नामका इन्द्रक बिल है ।।४।।
दिशाक्रमसे सातों-पृथिवियोंके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके निरूपणकी प्रतिज्ञा
घम्मादी-पुढवीणं पढमिवय-पढम-सेढिबद्धाणं । सामाणि णिरूवेमो पुवादि-"पदाहिण-क्कमेण ।।४६।।
४. द. दुचुपहा,
१. द. ब. तेत्तो। २. द. पारे, मारे, तारे। ३. ३. ब, क ठ. तस्स। ब. दुच्चुपहा। ५. द. पहादिको कमेण, ब. पहादिको कमेण । क. . पदाहिको कमेण ।