________________
गाथा : ४७-५० ]
बिदुभो महाहियारो
अर्थ :- धर्मादिक सातों पृथिवियों सम्बन्धी प्रविष्टी समोर aa बिलोंके नामोंका पूर्वादिक दिशाओं में प्रदक्षिण क्रमसे निरूपण करता हूं ||४६ ||
धर्मा पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध-बिलोंके नाम
कखा - पिपास-रणामा महकंखा श्रदिपिपास-रणामा य । प्रादिम-ढीबद्धा चत्तारो होंति सोमं ॥४७॥
[ १५३
मी
अर्थ :- धर्मा पृथिवीमें सीमन्त इन्द्रक बिलके समीप पूर्वादिक चारों दिशाओं में क्रमशः कांक्षा, पिपासा एवं महाकांक्षा और प्रतिपिपासा नामक चार प्रथम श्रेणीबद्ध बिल हैं ||४७॥
reath प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम
पढमो णिच्चणामो बिदियो विज्जो तहा 'महाणिच्चो । महविज्जो य चउत्यो पुन्वाविसु होंति थण गहि ||४६८ ||
अर्थ :- वंशा पृथिवी में प्रथम अनिच्छ, दूसरा श्रविन्ध्य, तीसरा महानिच्छ और चतुर्थ महाविन्ध्य, ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक दिशानोंमें स्तनक इन्द्रक बिलके समीप हैं ॥४८॥
her पृथिवी प्रथम श्रेणीबद्ध - बिलोंके नाम
दुक्खा य वेदणामा महदुक्खा तुरिमया अ महवेदा । यस एवे पुग्वादिसु होंति चत्तारो ॥ ४६ ॥
अर्थ : मेघा पृथिवी में दुःखा, वेदा, महादुःखा और महावेदा ये चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक दिशाओं में तप्त इन्द्रकके समीप हैं ॥४६॥
अंजना - पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम
आरिए णिसट्टो पढमो बिदिश्रो वि अंजण - रिंग रोधो । तदिश्रो "य श्रदिणिसत्तो महणिरोधो चउत्यो सि ॥५०॥
१. द. ब. महाविज्जो । २. द. बि. क. ठ. घरागन्हि । ३ व तत्तियिस्स ।
५. व. उतिउ य ।
४. ठ. मिट्टी