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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३८
१३ । ११ । ६।७।५ । ३।१।
अर्थ :-रत्नप्रभा आदिक पृथिवियों में क्रमश: तेरह, ग्यारह, नौ, सात, पाँच, तीन और एक, इसप्रकार कुल उनचास इन्द्रक बिल हैं ॥३७॥
विशेषार्थ :-प्रथम नरकमें १३, दूसरेमें ११, तीसरेमें ६, चौथेमें ७, पाँचवेंमें ५, छठेमें ३ और सातवें नरकमें एक इन्द्रक चिल है । एक-एक पटलमें एक-एक इन्द्रक बिल है, अतः पटलभी ४६ ही हैं।
इन्द्रक बिलोंके आश्रित श्रेणीबद्ध विलोंकी संख्या पठमम्हि इंदयम्हि य दिसासु उणवण-सेढिबद्धा य । अडदालं विदिसासु विदियादिसु एक्क-परिहीणा ॥३८॥
अर्थ :-पहले इन्द्रक बिलकी आश्रित दिशाओं में उनचास और विदिशामोंमें अड़तालीस श्रेणीबद्ध बिल हैं । इसके आगे द्वितीयादि इन्द्रक बिलोंके प्राश्रित रहनेवाले श्रेणीबद्ध बिलोंमेंसे एकएक बिल कम होता गया है ॥३८॥
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