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गाथा : २८-३० ] विदुप्रो महाहियारो
[ १४७ बिलोंका स्थान सत्तम-खिदि-बह-मझे 'बिलाणि सेसेसु अप्पबहलंतं ।
उरि हे जोयण-सहस्समुझिय हवंति पडल-कमे ।।२।। अर्ष :--सातवीं पृथिवीके तो ठीक मध्यभागमें बिल हैं, परन्तु अब्बहुलभाग पर्यन्त शेष छह पृथिवियोंमें नीचे एवं ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर पटलोंके क्रमसे नारकियोंके बिल होते हैं ।।२८॥
विशेषार्थ :-सातवीं पृथिवी पाठ हजार योजन मोटी है। इसमें ऊपर और नीचे बहुत मोटाई छोड़कर मात्र बीच में एक बिल है, किन्तु अन्य पाँच पृथिवियोंमें और प्रथम पृथिवीके अब्बहुलभागमें नीचे ऊपरकी एक-एक हजार योजन मोटाई छोड़कर बीचमें जितने-जितने पटल बने हैं, उनमें अनुक्रमसे बिल पाये जाते हैं।
नरकबिलोंमें उष्णताका विभाग
पढ़मादि-बि-ति-चउक्के पंचम-पुढवीए' ति-घउक्क-भागतं ।
अदि-उण्हा मिरय-बिला तट्ठिय-जीवाण तिव्य-वाघ-करा ।।२६।। प्रर्थ :-पहली पृथिदीसे लेकर दूसरी, तीसरी, चौथी और पाँचवों पृथिवीके चारभागोंमेंसे तीन (३) भागोंमें स्थित नारकियोंके बिल अत्यन्त उष्ण होनेसे वहां रहने वाले जीवोंको गर्मीकी तीन वेदना पहुंचाने वाले हैं।॥२६॥
मरकबिलोंमें शीतताका विभाग पंचमि-खिदिए तुरिमे भागे छट्ठीन सत्तमे महिए। अदि-सीमा णिरय-बिला तट्ठिय-जीवारण धोर-सीद-करा ॥३०॥
अर्थ :-पाँचवीं पृथिवीके अवशिष्ट चतुर्थभागमें तथा छठी और सातवीं पृथिवीमें स्थित नारकियोंके बिल अत्यन्त शीत होने से वहाँ रहनेवाले जीवोंको भयानक शीतकी वेदना उत्पन्न करने वाले हैं ।।३०। ... .
१. द. य. क. ठ. बिलारण। २. ब. पडालकमे। ३. द. पुढवीय। ४. ब. के. महीए।