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१४६ ] तिलोयपहात्ती
[ गाथा : २० अर्थ :-सर्व पुथिवियोंमें नारकियोंके बिल कुल चौरासी लाख ( ८४००००० ) हैं। अब इनमें से प्रत्येक पृथिचीका आश्रय करके उन बिलोंके प्रमाणका निरूपण करता हूं ॥२६।।
पृथिवी क्रमसे बिलोंकी संख्या . तीसं 'पणवीसं पण्णरसं बस तिण्णि होंति लक्खाणि ।
पण-रहिबेक्कं लक्खं पंच य 'रयणादि-पुढयीणं ।।२७।। ३०००००० । २५००००० । १५००००० । १०००००० । ३००००० | REEE५ । ५। . ....... अर्थ :--रत्नप्रभा प्रादिक पृथिवियोंमें क्रमश: लीस लाख, पच्चीस लाख, पन्द्रह लाख, दस लाख, तीन लाख, पांच--कम एक लाख और केवल पाँच ही बिल हैं ।।२७।।
विशेषार्थ :-प्रथम नरकमें ३००००००, दूसरेमें २५०००००, तीसरेमें १५०००००, चौथेमें १००००००, पांचवेंमें ३०००००, छठेमें REE६५ और सातवें नरकमें ५ बिल हैं ।
सातों नरक पृथिवियों को प्रभा, माहल्य एवं खिल संख्या .गा. ६, २१-२३ और २७
मतान्तरसे । प्रभा
बाहल्य योजनोंमें
| बिलोंकी संख्या - योजनोंमें
बाहल्य
कमांक
नाम
प्रभा
रत्नप्रभा
रत्नों सहसं
१८०००
१८००००
1
शर्कराप्रभा
३२०००
१३२०००।
२५०००००
०००
वालुकाप्रभा
२८०००
१२८०००
पंकप्रभा
२४०००
शक्कर , बालू , कीचड़. , धूम , अन्धकार , महान्धकार,
१००००००
१२४००० १२००००
२००००
धूमप्रभा तमप्रभा
१६०००।११६०००।
महातमप्रभा
དབ༠༠
| १०८०००
१. द. पणुवीसं।
२. द. ब. क. रयणेइ।