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गाथा : २३-२६ ]
विदुषो महाहियारो प्रकारान्तरसे पृथिवियोंका बाहल्य
वि. गुणिय छच्च सही-सठ्ठी- उणसट्टी अठ्ठ' चजवण्णा । बहलत्तणं सहस्सा होम पुढवीण छष्णं
पि ॥२३॥
पाठान्तरम् ।
१३२०००
१२८००० | १२०००० | ११८००० | ११६००० | १०८००० अर्थ :-- घास, चौंसठ साठ, उनसठ अट्ठावन और जीवन इनके दुगुने हजार योजन प्रमाण उन ग्रधस्तन छह पृथिबियोंकी मोटाई हैं ||२३||
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विशेषार्थ :- शर्करा पृथिवीकी मोटाई ( ६६ हजार x २ = ) १३२००० योजन बालुकाकी (६४ हजार×२) = १,२८००० यो०, पंकप्रभाकी (६० हजार ४२ ) = १२०००० यो०, धूमप्रभाकी ( ५६ ६० x २ ) = ११८००० यो० तमः प्रभाकी (५८ हृ० ४२ ) - ११६००० यो० और महातमः प्रभाकी ( ५४ हृ० x २ ) - १०८००० योजन प्रमाण है ।
पृथिवियोंसे घनोदवि वायुकी संलग्नता एवं प्राकार
सत्तविय भूमीश्र णव - दिस - भाएरण धरणोवहि-विलग्गा' । अट्टम - भूमी बस - बिस-भागेसु घणोर्वाह' छिवदि ॥ २४॥ पुव्वावर - दिवभाए उत्तर-दक्खिरण- दीहा श्रणावि - णिहरणा य पुरुषी || २५ ||
वेत्तासण-संरिणहाम्रो संठान ।
अर्थ : सातों पृथिवियों ( ऊर्ध्व दिशाको छोड़कर शेष ) नी दिशाओंोंके भागसे धनोदधि वातवलयसे लगी हुई हैं परन्तु आठवीं पृथिवी दसों दिशाओंके सभी भागोंमें घनोदधि वातवलयको छूती है । ये पृथिवियाँ पूर्व और पश्चिम दिशा के अन्तराल में वेत्रासनके सदृश आकारवाली तथा उत्तर और दक्षिण में समान रूप से दीर्घ एवं अनादिनिधन हैं ।।२४-२५॥
नरक बिलोंका प्रभारख
चुलसीवी 'लक्खाणं णिरय-बिला होंति सम्ब-पुढवीसु । पुढवि पडि पत्तेक्क ताण पमाणं परूवेमो ॥२६॥
८४००००० |
४. क. ठ. लक्खा ।
१. ब. क. ब. दुविसट्टि । छचउट्टि सहिदविसठि । २. ठ. पुरणबहीण । ३. ठ, पुणो हि ।