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१४४ ] तिलोयगणरणत्ती
[ गाथा : २०.२२ रत्नप्रभा नामकी सार्थकता एवं बहुविह-रयरगप्पयार-भरिवो बिराजदे जम्हा ।
रयणप्पहो' ति तम्हा भणिवा णिउणेहि गुणगामा ॥२०॥
प्रथ:-इसप्रकार क्योंकि यह पृथिबी बहुत प्रकारके रत्नोंसे भरी हुई शोभायमान होती। है, इसीलिए निपुण-पुरुषोंने इसका 'रत्नप्रभा' यह सार्थक नाम कहा है ॥२०॥
शेष छह पृथिवियोंके नाम एवं उनकी सार्थकता सक्कर-बालुव-पंका धूमतमा तमतमा हि सहचरिया । जाम्रो' प्रवसेसावो' छप्पुढवीयो वि गुरगणामा ॥२१॥
प्रर्थ :- शेष छह पृथिवियाँ क्रमशः शक्कर, वालू , कीचड़, धूम, अन्धकार और महान्धकारकी प्रभासे सहचरित हैं, इसीलिए इनके भी उपर्युक्त नाम सार्थक हैं ।।२।।
विशेषार्थ :- रत्नप्रभापृथिवीके नीचे शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और तमस्तमः प्रभा ( महातमः प्रभा ) ये छह पृथिवियां क्रमशः शर्करा आदिकी प्रभासदृश सार्थक नाम वाली हैं।
शर्करा-आदि पृथिवियोंका बाहल्य बत्तीसट्ठावीसं चयीसं वीस-सोलसटुं च । हेटिम-छप्पुढवीणं बहलत्तं जोयण-सहस्सा ॥२२॥
३२००० । २८००० । २४००० । २०००० १ १६००० । ८००० ।
पर्य :-इन छह अधस्तन पृथिवियोंकी मोटाई क्रमशः बत्तीस हजार, अट्ठाईस हजार, चौबीस हजार, बोस: हजार, सोलह हजार और आठ हजार योजन प्रमाण है ॥२२॥
विशेषार्थ :--शर्करा पृथिवीकी मोटाई ३२००० योजन, बालुकाकी २८००० योजन, पंकप्रभाकी २४००० योजन, धूमप्रभाकी २०००० योजन, तमःप्रभाकी १६००० योजन और महातमः प्रभाकी ८००० यो मोटाई है।
१. [रयणप्पह ति], ठ. रयणप्पह होत्ति। २. द. ब. क. ठ. जेतं। ३. 6. प्रवसेवासो।