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[२] क -कामां ( भरतपुर ) राजस्थान से प्राप्त होने के कारण इस प्रति का नाम 'क' प्रति है । यह कामां के श्री १००८ शान्तिनाथ दिगम्बर जैन खण्डेलवाल पंचायती दीवान मन्दिर से प्राप्त हुई है । यह १२३"४७" आकार की है और इसके कुल पत्रों की संख्या ३१६ है। प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियाँ हैं । प्रति पंक्ति में ३७ से ४० वर्ण हैं । लेखन में काली व लाल स्याही का प्रयोग किया गया है । पानी एवं नमी का असर पत्रों पर हुमा दिखाई देता है तथापि प्रति पूर्णतः सुरक्षित और अच्छी स्थिति में है।
यह बम्बई प्रति की नकल ज्ञात होती है, क्योंकि वही प्रशस्ति ज्यों की त्यों लिखी गई है। लिपिकाल का अन्तर है
"संवत् १८१४ वर्षे मिती माघ शुक्ला नवम्यां गुरुवारे । इदं पुस्तकं लिपीकृत कामावतीनगरमध्ये । श्रूतं भूयात् ।। श्रीः ।।
१३] ठ-इस प्रति का नाम '४' प्रति है । यह डॉ. कस्तूरचन्दजी कासलीवाल के सौजन्य से श्री दिगम्बर जैन सरस्वती भवन, मन्दिरको ठोलियान, जयपुर से प्राप्त हुई है । इसके वेष्टन पर 'नं० ३३२, श्री त्रिलोकप्रज्ञप्ति प्राकृत' अंकित है। प्रति १२३" x ५" आकार की है । कुल पत्र संख्या २८३ है परन्तु पत्र संख्या ८८ से १०३ और १५१ से २५० प्रति में उपलब्ध नहीं हैं ।
पत्र संख्या १ से ८६ तक की लिपि एक सी है । पत्र ८७ एक ओर ही लिखा गया है। दूसरी ओर बिल्कुल खाली है । इसके हाशिए में वायें कोने में १०३ संख्या अंकित है और दायें कोने में नीचे हाशिए में संख्या ८७ अंकित है। यह पृष्ठ अलिखित है।
पत्र संख्या १०४ से १५० और २५१ से २८३ तक के पत्रों की लिपि भी भिन्न भिन्न है। इस प्रकार इस प्रति में तीन लिपियाँ हैं । प्रति अच्छी दशा में है । कागज भी मोटा और अच्छा है। पत्र संख्या १०४ से १५० तक के हाशिये में बायीं तरफ ऊपर 'त्रिलोक प्रज्ञप्ति' लिखा गया है । शेष पत्रों में नहीं लिखा गया है।
इसका लिपि काल ठीक तरह से नहीं पढ़ा जाता। उसे काट कर अस्पष्ट कर दिया है, वह १८३० भी पढ़ा जा सकता है और १८३१ भी । प्रशस्ति भी अपूर्ण है
संवत् १८३१ चतुर्दशोतिथी रविवासरे..."