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संस्करण प्रकाशित करने का हमारा लक्ष्य आज पूरा हो रहा है, यह प्रात्मसंतोष मेरे लिए महार्य है। ३. हस्तलिखित प्रतियों का परिचय : तिलोयपणती का प्रस्तुत संस्करण निम्नलिखित प्रतियों के आधार से तैयार किया गया है
द-दिल्ली से पार होने के कारण दर प्रति का नाम 'द' प्रति है। इसके मुखपृष्ठ पर 'श्री दिगम्बर जैन सरस्वती भण्डार धर्मपुरा, दिल्ली ( लाला हरसुखराय सुगनचंदजी) नं० आ ८ (क) श्री नवामंदिरजी' अंकित है । यह १६"x५" प्रकार की है । कुल २०४ पत्र हैं। प्रत्येक पत्र में १४ पंक्तियां हैं और प्रति पंक्ति में ५० से ५२ वर्ण है। पूरी प्रति काली स्याही से लिखी गई है । प्रत्येक पृष्ठ का अलवारण है। एक ओर पृष्ठ के मध्यभाग में लाल रंग का एक वृत्त है, दूसरी ओर तीन वृत्त । एक स्थान पर मध्य में १६ गाथायें छुट गई है जो अन्त में एक स्वतन्त्र पत्र पर लिख दी गई हैं। साथ में यह टिप्परा है- इति गाहा १६ त्रैलोक्यप्रज्ञप्तौ पश्चात् प्रक्षिप्ताः ।" सम्पूर्ण प्रति बहुत सावधानी से लिखी हुई मालूम होती है तो भी अनेक ग्निपिदोष तो मिलते ही हैं। देखने में यह प्रति बम्बई की प्रति से प्राचीन मालूम पड़ती है ।।
प्रारम्भ में मङ्गल चिह्न के बाद प्रति इस प्रकार प्रारम्भ होती है-ॐ नमः सिद्ध भ्यः । प्रति के अन्त में लिपिकार की प्रशस्ति इस प्रकार है
प्रशस्तिः स्वस्ति श्री सं० १५१७ वर्षे मार्ग सुदि ५ भौमबारे श्री मूलसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारकीपद्मनंदिदेवास्तत्पट्टे भट्टारकधीशुभचन्द्रदेवाः तत्पट्टालङ्कारभट्टारकश्रीजिन चन्द्रदेवाः । मु. श्रीमदनकीर्ति तच्छिष्य ब्रह्मनरस्यंघकस्य खंडेलवालान्वये पाटणीगोत्रे सं० वी धू भार्या बहुश्री तत्पुत्र सा० तिहुणा भार्या तिहणश्री सुपुत्राः देवगुरुचरणकमलसंसेवनमधुकराः द्वादशवतप्रतिपालनतत्परा: सा० महिराजभ्रातृ ष्यो राजसुपुत्रजालप। महिराजभार्या महराश्रीष्यो राजभार्याष्यो श्री सहिते त्प: एतद् अन्धं त्रैलोक्य प्रज्ञप्तिसिद्धान्तं लिखाप्य व नरस्य॑धकृते कर्मक्षयनिमित्तेः प्रदत्तं 11छ।।
यावज्जिनेन्द्रधमोऽयं लोलोके स्मिन् प्रवर्तते ।
यावत्सुरनदीवाहास्तावन्नन्दतु पुस्तकः ।।१।। इदं पुस्तकं चिरं नंद्यात् ॥छ।। शुभमस्तु ।। लिखितं पं० नरसिंहेन छ।। श्रीझ झुणुपुरे लिखितमेतत्पुस्तकम् ॥छ।।
( पूर्व सम्पादन भी इसी प्रति से हुभा था।)