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दुष्कर कार्य सम्पन्न किया था। ये कोटि-कोटि बधाई के पात्र है। इन मुद्रित प्रतियों के होने से हमें वर्तमान संस्करण को प्रस्तुत करने में भरपूर सहायता प्राप्त हुई है, हम उनके अत्यन्त ऋणी हैं। इन मुद्रित प्रतियों में सम्पूर्ण ग्रन्थ' का स्थूल रूप इस प्रकार है
क्रम सं. विषय
अन्तराधिकार
कुल पद्य गद्य गाथा के अतिरिक्त छंद मंगलाचरण
प्रस्तावना व लोक का सामान्य निरूपण
x
२६३ गद्य
पंचपरमेष्ठी/मादि०
२.
नारकलोक
भवनवासीलोक
४,
मनुष्यलोक
१५ अधि० ३६७ ४ ४ इन्द्रवज्ञा। अजित/सम्भव
१ स्वागता । २४ अधिक २४३ ४ २ इन्द्रवजा । अभिनंदन/सुमति
४ उपजाति । १६ अधि० २६६१ गद्य ७६.व.,रदोधक । पद्मप्रभमुपाव
व.ति, शा.वि. १६ अधि० ३२१ गद्य
चन्द्रप्रभ/पुष्पदन्त
शीतल/श्रेयांस १७ अधि० ६१६ गद्य - वासुपूज्य/विमल
२१ अधि० ७०३ गद्य १ शार्दूल वि० अनन्त/धर्मनाथ ___५ अधि०७७ x १ मालिनी शांति,कुन्थुअर से वर्ध.
तियरलोक
१७अधि०१०३X
व्यन्तरलोक ज्योतिर्लोक
देवलोक ६. सिद्धलोक
अपनी सीमानों के बावजूद इसके प्रथम सम्पादकों ने जो श्रम किया है वह नूनमेव स्तुत्य है । सम्भव पाठ, विचारणीय स्थल आदि की योजना कर मूल पाठ को उन्होंने अधिकाधिक शुद्ध करने का प्रयास किया है। उनकी निष्ठा और श्रम की जितनी सराहना की जाए कम है । २. टोका व सम्पादन का उपक्रम :
___ प्रार्यारत्न १०५ श्री विशुद्धमती माताजी अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी विदुषी' साध्वी हैं। आपने त्रिलोकसार (नेमिनन्द्राचार्यकृत ) और सिद्धान्तसार दीपक ( भट्टारक सकलकीति ) जैसे महत्त्वपूर्ण विशालकाय ग्रन्थों की विस्तृत हिन्दी टीका प्रस्तुत की है। ये दोनों ग्रंथ क्रमशः भगवान महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण वर्ष और बाहुबली सहस्राब्दी प्रतिष्ठापना-महामस्तकाभिषेक महोत्सव वर्ष के