________________
गाथा : २६६ ] पढमो महाहियारो
[ १०६ अर्थ :-मात स्थानोंमें नीचेसे ऊपर-ऊपर घनराजू को रखकर घनफल जाननेके लिए गुणकार और भागहार कहता हूं ।।२६४।।
अर्थ :-दन सात स्थानों में क्रमशः दोसो दो, पंचानबे, इक्कीस, बयालीसमौ संतालीस, ग्यारह, चौदहसौ पंचानवे और नौ, ये मात गुणकार हैं तथा भागहार यहाँ नौ, नौ, एक, वहतर, एक वहत्तर पीर चार हैं ।।२६५-२६६।।
विशेषार्थ : -"मुखभूमिजोगदले-पद-हदे" सूत्रानुमार प्रत्येक खण्डकी भूमि और मुखको जोड़कर, प्राधा करके उसमें अपनी-अपनी ऊँचाई और ७ राजू बेधसे गुणिन करनेपर प्रत्येक खण्डका घनफल प्राप्त हो जाता है । यथा :
खण्ड प्रथम खण्ड द्वितीय खण्ड तृतीय खण्ड चतुर्थ खण्ड पंचम खण्ड
+
भूमि - | मुख= | योग x अर्धकिया x ॐ. x | मोटाई=| घनफल १
१२ घनराजू घनफल ए घनराजू घनफल २. धनराजू घनफल
४३६ घनराजू धनफल 1+
| घनराज घनफल +
18 धनराज घनफल १ धनराजू धनफल
ANK AAMA
न ANUSMANAata
+
at xxx x
+
षष्ठ खण्ड
सप्तम खण्ड (चलिका)
=
७२
सर्वयोग-२१ + १५+२+३ +++४३५+७= १६१६ + ७६० + १५१२ + ४२४७ + ७९२ + १४६.५ + १६२ _ १०५८४ .. घनराजू मन्दर-ऊर्वलोकका घनफल है । ७. दुष्य ऊर्ध्वलोकका घनफल
५ राजू भूमि, १ राजू मुख और ७ राजू ऊँचाई प्रमाण वाले ऊर्ध्वलोकमें दूष्यकी रचनाकर घनफल प्राप्त करना है, जिसकी आकृति इसप्रकार है। यथा :