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तिलोय पण्णत्ती
सत्ताणउदी तिधिय णउदाश्रो ।
'पंचुत्तर - एक्कस चरसीदो सेवा उदाल एक्कवीस गुरणगारा ।। २६३ ।।
१४७ १०५ | १४७६७ । ४७९३ । ७६४ । ४७५३ । १४७४४ | १४७२१ ॥ अर्थ :- सातों स्थानों में ऊपर-ऊपर इक्कीससे विभक्त राजू रखकर उनमें विस्तारके निमित्तभूत गुणकार कहता हूं ||२६२ ।।
अर्थ :---एकसी पांच सत्तानवे, तेरानवे, चौरासी, तिरेपन, चवालीस और इक्कीस उपर्युक्त सात स्थानों में ये सात गुणकार हैं ।। २६३ ।।
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विशेषार्थ : - इस मन्दराकृतिक्षेत्रका भूमि विस्तार ५ राजू मुख विस्तार १ राजू और ऊँचाई ७ राजू है । भूमिमेंसे मुख घटा देनेपर ( ५- १ ) = ४ राजू हानि ७ राजू ऊँचाई पर होती है अर्थात् प्रत्येक एक-एक राजूकी ऊँचाईपर राजूकी हानि प्राप्त होती है । इस हानि-चयको अपनीअपनी ऊँचाईसे गुणित करनेपर हानिका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । उस हानिको पूर्व-पूर्व विस्तारमेंसे घटा देनेपर ऊपर-ऊपरका विस्तार प्राप्त होता जाता है । यथा :
तलभाग ५ राजू अर्थात् ६१५ राजू, राजूकी ऊँचाईपर राजू, राजूकी ऊँचाईपर
राजू,
राजू, राजूकी ऊँचाईपर राजू और १३ राजूकी ऊँचाईपर राजू विस्तार है ।
[ गाथा: २६३-२६६
= २०२ = ६५ ३४३ ६ ३४३ ६
उड्डुढं रज्जु-घणं सत्तसु ठासु ठविय हेट्ठादो । विदफल - जाणण
दुजुदारिंग दुसर्याारिंग सत्तत्तालजुदारिण
पण वदियधिय- चउदस-सयाणि साव इय हवंति गुरपगारा ।
हारा णव णव एक्कं बाहत्तरि इगि बिहत्तरी चउरो ॥ २६६ ॥
१. ज क ल ब पंचत्तं एक्कसयं ।
= २१ = ३४३१ | ३४३
= १४१५ = C ३४३ ७२ ३४३४
राजू, राजूकी ऊँचाईपर राजूकी ऊँचाईपर
वोच्छं गुणगार-हाराणि ॥ २६४ ॥ पंचाणउदी य एक्कश्रीसं च । बादल - सयाणि एक्करसं ।।२६५।।
४२४७ | = ११ ७२ ३४३ १
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