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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २५७
-
- अरव
AWशपत्र
उपयुक्त प्राकृतिके मध्यमें एक मुरज और दोनों पार्श्वभागोंमें सोलह-सोलह अर्धयव प्राप्त होते हैं । दोनों पार्श्वभागोंके ३२ अर्धयवोंके पूर्णयव १६ होते हैं । एक यवका विस्तार : राजू, ऊंचाई
राजू और वेध ७ राजू है, अतः३४३ (अर्धकिया )xxx= धनराजू घनफल प्राप्त होता है । यतः एक यवका घनफल ६ घनराजू है, अतः १६ यवोंका (2x")=४६ घनराजू धनफल प्राप्त हुना।
___ मुरजके बीचसे दो भाग करनेपर अर्धमुरजको भूमि ३ राजू मुख १ राजू, ऊँचाई १ राजू और वेध ७ राजू है, इसप्रकारके अर्धमुरज दो हैं, अतः (३+१=)xxxx३-९८ घनराज पूर्ण मुरजका घनफल होता है और दोनोंका योग कर देने पर ( ४६+६८ )=१४७ धनराजू घनफल यवमुरज ऊर्ध्वलोकका प्राप्त होता है । लोक ( ३४३ ) को ७ से भाजित करने पर ४६ और उसी लोक ( ३४३ ) को ७ से भाजित कर दो से गुरिणत करदेनेसे ६८ घनफल प्राप्त हो जाता है । यही बात गाथामें दर्शायी गई है ।
यवमध्य ऊर्ध्वलोकका धनफल एवं प्राकृति घणफलमेक्कम्मि जवे अट्ठावीसेहिं भाजिदो लोगो । तं बारसेहि गुणिदं जव-खेत्ते होदि विवफलं ॥२५७।।