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गाथा : २५७ ] पढमो महाहियारो
[ १०५ अर्थ :- यवमध्य क्षेत्रमें एक यवका घनफल अट्ठाईससे भाजित लोकप्रमाण है। इसको बारहसे गुणा करनेपर सम्पूर्ण यवमध्य क्षेत्रका घमफल निकलता है ।।२५७।।
विशेषार्य :-(५) यवमध्य ऊध्र्यलोकका घनफल :
५ राज़ भूमि, १ राजू मुख और ७ राजू ऊँचाई वाले सम्पूर्ण ऊर्ध्वलोक क्षेत्रमें यवोंको रचना इसप्रकार है :--
इस प्राकृतिमें पूर्ण-यव ६ और अर्धयब ६ हैं । ६. अर्धयवोंके पूर्ण यव बनाकर पूर्ण यवोंमें जोड़ देनेगर (E+३)-१.२ पूर्ण यव प्राप्त हो जाते हैं । एक यवका विस्तार १ राजू, ऊँचाई राजू और बेध ७ राजू है अत: xxx= धनराजू एक यवका धनफल प्राप्त होता है । क्योंकि एक यवका घनफल : धनराजू है अतः १२ यदोंका १४३१४७ धनराज सम्पूर्ण यवमध्य ऊर्वलोक क्षेत्रका वनफल प्राप्त होता है । लोक (३४३) को २८ से भवजितकार - १२ से गुणित करने पर भी ( x)=१४७ धनराजू ही प्राप्त होता है । इसीलिए गाथामें लोकको अट्ठाईससे भाजितकर बारहसे गुणा करनेको कहा मया है।
६. मन्दर-ऊर्ध्वलोकका घनफल :--५ राजू भूमि, १ राजूमुख और ७ राजू ऊँचाई वाले ऊर्बलोक मन्दर ( मेरु ) की रचना करके घनफल निकाला जायगा । यथा :