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तिलोय पण्पत्ती
[ गाथा : २५३-२५४ विशेषार्थ :--उपर्युक्त प्राकृतिमें प्रत्येक गिरि एवं कटककी भूमि १ राजू, मुख , उत्सेध राजू और बेध ७ राजू है अतः (+0--)xixix-३ घन राजू प्राप्त है । लोक (३४३) को ८४ से भाजित करने पर भी ( ३४३२८४ )-३३ प्राप्त होते हैं, इसीलिए गाथामें लोकको चौरासीसे भाजित करनेको कहा गया है ।
क्योंकि एक गिरिका घनफल: धनराजू है अतः २७ पहाड़ियोंका घनफल १३४२*५४५११० घनराजू होगा । इसीप्रकार जब एक कटकका घनफल ३ घनराजू है, तब २१ कटकों का घनफल x = 39-८५३ धनराजू होता है। इन दोनों घनफलोंका योग कर देनेपर ( ११०:+८५३ ) - १९६ घनराजू घनफल सम्पूर्ण गिरिकटक अधोलोक क्षेत्रका प्राप्त होता है ।
अधोलोकके वर्णनकी समाप्ति एवं ऊर्ध्वलोकके वर्णनकी सूचना
एवं अट्ठ-बियप्पो हंटिम सोनी या विषयी एस. । एण्हि उपरिम-लोयं अट्ठ-पयारं शिरूवेमो ॥२५३॥
अर्थ :-इसप्रकार पाठ भेदरूप अधोलोकका वर्णन किया जा चुका है। अब यहाँसे प्रागे आठ प्रकारके कज़लोकका निरूपण करते हैं ।।२५३॥
विशेषार्थ :- इसप्रकार पाठभेदरूप अधोलोकका वर्णन समाप्त करके पूज्य यतिवृषभाचार्य आगे १. सामान्य ऊध्वंलोक, २. ऊर्वायत चतुरस्र ऊवलोक, ३. तिर्यगायत चतुरस्त्र ऊर्वलोक, ४. यवमुरज ऊर्बलोक, ५. यबमध्य ऊर्व लोक, ६ मन्दरमेरु ऊर्ध्व लोक, ७. दुष्य ऊर्ध्वलोक और व गिरिकटक ऊर्ध्वलोकके भेदसे ऊज़लोकका धनफल आठ प्रकारसे कहते हैं।
सामान्य तथा ऊर्ध्वायत चतुरस्र कवलोकके घनफल एवं प्राकृतियां
सामण्णे विवफलं सत्त-हियो होइ ति-रिणदो लोपो। विदिए वेद-भुजाए" सेढी कोडी ति-रज्जनो ॥२५४॥
|३|-1-1८३
१. द. ब. क. ज. ठ. वियप्पा हेष्टिम-लोउए।
२. द. क. तिगुणिधा ।
३. द. ब. क. ज. ठ.
मजासे।