________________
गाथा : २.५४ ] पढमो महाहियारो
[ १०१ अर्थ :- सामान्य ऊर्बलोकका धनफल सातसे भाजित और तीनसे गुणित लोकके प्रमाण अर्थात् एक सौ सैंतालीस राजूमात्र है ।
द्वितीय ऊर्ध्वायतचतुरस्र क्षेत्रमें वेध और भुजा जगच्छणी प्रमाण, तथा कोटि तीन राजू मात्र है ।।२५४॥
विशेषार्थ :-सामान्य ऊर्ध्वलोककी प्राकृति :
सामान्य ऊर्वलोक ब्रह्मस्वर्गके समीप ५ राजू विस्तार वाला एवं ऊपर नीचे एक-एक राजू विस्तार वाला है अतः ५ राजू भूमि, १ राजू मुख, राजू ऊँचाई और ७ राजू वेध वाले इस ऊर्वलोकके दो भाग करलेनेपर इसका घनफल इसप्रकार होता है--
(भूमि ५+ १ मुख =)xxx१४३१४७ घनराजू सामान्य ऊर्ध्वलोकका घनफल है। . . . .
२. ऊर्ध्वायत चतुरस्र ऊर्ध्वलोकका घनफल :
ऊर्वायत चतुरस्रक्षेत्रको भुजा जगच्छे रणी ( ७ राजू ), वेध ७ राजू और कोटि ३ राजू प्रमाण है । यथा
( चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये )