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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : २४१-२४२ प्राकृतिमें बने हुए ८ अर्धययोंके ४ पूर्ण यव बनाकर सम्पूर्ण अधोलोकमें (२० +४)=२४ पूर्ण यवोंकी प्राप्ति होती है । प्रत्येक यवके मध्यकी चौड़ाई १ राजू और ऊपर-नीचेकी चौड़ाई शून्य है तथा ऊँचाई राजू और वेध ७ राजू है, अतःxxx अ र्थात् १ धनराजू एक यवका घनफल है । लोक ( ३४३ ) में ४२ का भाग देनेपर भी (११) प्राप्त होते हैं, इसीलिए गाथामें एक यवका घनफल बयालीससे भाजित लोकप्रमाए कहा गया है ।
एक यबका घनफल घनराजू है अत: २४ यवोंका घनफल x१४-१६६ घनराजू प्राप्त होता है । लोक (३४३) को ७ से भाजितकर ४ से गुरणा करने पर भी (३४३ : ७=४६४४)= १९६ घनराजू ही पाते हैं इसीलिए गाथा २४ यवोंका घनफल सातसे भाजित और चारसे गुणित लोकप्रमाण कहा गया है ।
मन्दरमेरु अधोलोकका धनफल और उसकी प्राकृति रमनूवो ते-भाग' बारम-भागो तहेव सत्त-गुरषो । तेदालं रज्जूम्रो बारस-भजिवा हवंति उड्ढुड्ढं ॥२४१॥
१४ । ३८ । । । । सप्त-हब-बारसंसा दिवढ-गणिदा हवेइ रज्जू य । मंदर-सरिसायामे उच्छेहा होइ खेतम्मि ॥२४२॥
। ७ 14:३। अर्थ :-मन्दरके मदृश आयाम बाले क्षेत्रमें ऊपर-ऊपर ऊँचाई, क्रमसे एक राजूके चार भागोंमेंसे तीनभाग, बारह भागोंमेंसे सात भाग, बारहसे भाजित तेतालीस राजू, राजूके बारह भागोंमें से सात भाग और डेढ राजू है ।।२४१-२४२।।
६ मन्दरमेरु अधोलोकका घनफल :
विशेषार्थ :-अधोलोकमें सुदर्शन मेरुके प्राकारको रचना द्वारा घनफल निकालनेको मन्दर धनफल कहते हैं।
अधोलोक सातराजू ऊंचा है, उसमें नीचेसे ऊपरको मोर (३+)- राजूके प्रथम व द्वितीय स्खण्ड बने हैं । इनमें ३ राजू, पृथिवीमें सुदर्शनमेरुकी जड़ अर्थात् १००० योजनके और है
१. द. ब. ज. क. ४. तेदालं । २. द. ज. ल. तेलंतं, व, क. तेसंम । ३. ब. क. बारसंसो।