________________
गाया : २४३-२४४ ]
पढो महाहियारो
[ ९३
राजू, भद्रशालवनसे नन्दनवन तक की ऊँचाई अर्थात् ५०० योजनके प्रतीक हैं। इनके ऊपरका तृतीय खण्ड राजूका है जो नन्दनवनसे ऊपर समविस्तार क्षेत्र अर्थात् ११००० का द्योतक है। इसके ऊपरका चतुर्थखण्ड ३ राजका है, जो समविस्तार से ऊपर सौमनसन्न तक अर्थात् ५१५०० योजनके स्थानीय है । इसके ऊपर पंचमखण्ड राजूका है जो सौमनसवनके ऊपर वाले समविस्तार अर्थात् ११००० योजनका प्रतीक है । इसके ऊपर षष्ठखण्ड राजूका है, जो समविस्तार से ऊपर पाण्डुकवन तक अर्थात् २५००० योजनका द्योतक है। इन समस्त खण्डोंका योग ७ राजू होता है ।
यथा – (३+) = +++++=६६=७ राजू |
अट्ठावीस - वित्ता सेढी मंदर-समम्मि 'तड-वासे । 'चउ-तड-करणवखंडिद-खेत्तेगं चूलिया होदि ॥ २४३ ॥
। ३८१ ।
अट्ठावीस - बित्ता सेढी चूलीय होदि मुह-रुदं । ततिगुणं भू-वासं सेठी बारस-हिदा तदुच्छेहो ॥ २४४॥ |
| १ | ३ | व
अर्थ :- मन्दर सदृश क्षेत्रमें तट भागके विस्तारमेंसे अट्ठाईससे विभक्त जगच्छ ेणी प्रमाण चार तटवर्ती करणाकार खण्डित क्षेत्रोंसे चूलिका होती है । अर्थात् तटवर्ती प्रत्येक त्रिकोणोंकी भूमि ( २८१ ) : राजू प्रमाण है || २४३ ||
अर्थ :- इस चूलिकाका मुख विस्तार अट्ठाईससे विभक्त जगच्छ्रेणी ( २८१ ) अर्थात् राजू, भूमि विस्तार इससे तिगुना ( २८३ ) अर्थात् राजू और ऊँचाई बारह से भाजित जगच्छ्र ेणी (१२) अर्थात् पर राजू प्रमाण है ।। २४४ ।।
विशेषार्थ :- दोनों समविस्तार क्षेत्रोंके दोनों पार्श्वभागों में चार त्रिकोण काटे जाते हैं, राजू है । इन चारों त्रिकोणोंमेंसे तीन चूलिका वन जाती हैं, जिसकी भूमि राजू प्रमाण है ।
उनमेंसे प्रत्येक त्रिकोण की भूमि राजू और ऊँचाई त्रिकोण सीधे और एक त्रिकोणको पलटकर उल्टा रखनेसे अर्थात् राजू, मुख अर्थात् राजू और ऊँचाई
इस मन्दराकृतिका चित्रण इसप्रकार है-
१. ६. ब. ज. क. उ. तलवासे । २. द. ब. ज. क. उ. चडतदकारणखंडिखेत्ते ।