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गामा : २३७-२३८ ]
पढमो महाहियारो एक गिरि या कटकका भूमि-विस्तार १ राजू, मुख ०, ऊँचाई - राजू और वेध ७ राजू है अतः {(+)= }x१५:४४१ धनराजू एक गिरि या एक कटकका घनफल प्राप्त हुमा । जब एक गिरि या कटकका धन फल 3. अर्थात् १ धनराजू है तब ( २०+१५) = ३५ गिरि-कटकोंका कितना घनफल होगा ? इसप्रकार त्रैराशिक करनेपर १४३५३४३ धनराजू अर्थात् ३५ गिरिकटकोंसे व्याप्त सम्पूर्ण लोकका घनफल ३४३ घनराजू प्राप्त होता है।
अधोलोकका घनफल कहनेकी प्रतिज्ञा एवं अट्ठ-वियप्पा सयलजगे वण्णिवा समासेण ।
एण्हं अट्ठ-पयारं हेट्टिम लोयस्स वोच्छामि ॥२३७॥ प्रपं: इसप्रकार आठ विकल्पोंसे समस्त लोकोंका संक्षेपमें वर्णन किया गया है। इसी प्रकार अधोलोकके पाठ प्रकारोंका वर्णन करूगा ।।२३७।। सामान्य एवं ऊयित ( प्रायत चतुरस्र ) अधोलोकका घनफल एवं प्राकृतियाँ
सामणे विवफलं सत्तहिदो होदि चउगुणो लोगो। विदिए वेद भुजाओ सेढी कोडी य चउरज्जू ॥२३॥
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अर्थ :-सामान्य अधोलोकका धनफल लोकके धनफल ( 2 ) में ४ का मुणा एवं ७ का भाग देनेपर प्राप्त होता है और दूसरे पायत चतुरस्र क्षेत्रको भुजा एवं वेध श्रेरिण प्रमाण तथा कोटि ४ राज प्रमाण है। अर्थात् मुजा ७ राजू, वेध सात राजू और कोटि चार राज् प्रमाण है ॥२३॥
विशेषार्थ :-१. मामान्य अधोलोकका धनफल
सामान्य अधोलोकको भूमि ७ राजू भोर मुख एक राजू है, इन दोनोंको जोड़कर उसका प्राधा करनेसे जो लब्ध प्राप्त हो उसमें ७ राजू ऊँचाई पीर ७ राजू वेधका गुणा करनेसे घनफल प्राप्त होता है। यथा-(७+१)=८२= ४४७४७- १९६ धनराजू सामान्य अधोलोकका घनफल है । इसका चित्रण इसप्रकार है--