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गाथा : २३३ ] पठमो महाहियारो
[ ८३ भद्रशालवनसे नन्दनवन अर्थात् द्वितीय खण्डकी भूमि +#मुख=२३, तथा घनफल =xxx=२३५ घनराजू प्राप्त होता है।
नन्दनवनसे समविस्तार क्षेत्र तक अर्थात् तृतीय खण्डकी भूमि + मुख, तथा घनफल= xxx=३१ घमराजू तृतीय खण्डका घनफल है।
समविस्तारसे सौमनसवन अर्थात् चतुर्थखण्डकी भूमि + मुख , तथा घनफल=xxx=1 धनराजू चतुर्थ खण्डका घनफल है।
सौमनसवनके ऊपर समविस्तार क्षेत्रतफ अर्थात् पंचमखण्डकी भूमि + तथा घनफल xxx१-११ धनराजू है।
+
मुख
समविस्तार क्षेत्रसे ऊपर पाण्डकवन तक अर्थात् षष्ठ खण्डको भूमि ३ तथा घनफल = xxx =१५० घनराजू प्राप्त होता है ।
पाण्डुकवनके ऊपर चूलिका अर्थात् सप्तम खण्डकी भूमि + मुख Hixxx- धनराजू चूलिका का घनफल है ।
सप्त स्थानोंके भागहार एवं मन्दरमेरु लोकका घनफल
तथा घनफल:
णव णय 'अट्रय बारस-वग्गो अट्र सयं च चउवालं । प्र8 एदे कमसो हारा सत्तेसु ठाणेसु ॥२३३॥ ४८४|
२२७। = ३९६ : १६६३३| = १६६ | ४ ३४३। ६ |३४३ 1 ८ । ३४३। १४४ |३४३ | -
= ३४३
। ३३३ । ६५०९/३.४५
अर्थ :-नौ, नौ, पाठ, बारह का वर्ग, पाठ, एक सौ चवालीस और पाठ, ये क्रमशः सात स्थानोंमें सात--भागहार हैं ।।२३३।।
विशेषाय :--इन सातों खण्डोंके घनफलोंका योग इसप्रकार है :
१. द. ब. अद्ध वारसवग्गे गवरणय भट्ठय । ज. का. ठ. अट्ट वारसवग्गे रणवणव अद्वय ।