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तिलोयपण्याती
[ गाथा : २२२ लोकमें मन्दर मेरुकी ऊँचाई एवं उसकी प्राकृति 'चउ-दु-ति-इगितीसेहिं तिय-तेवीसेहि मुरिणद-रज्जूयो। तिय-तिय-दु-छ-दु-छ भजिदा मंदर-खेत्तस्स उस्सेहो ॥२२२॥
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५-२१
११
११११ २२२२
अर्थ :-चार, दो, तीन, इकतीस, तीन और तेईससे गुरगत, तथा क्रमशः तीन, तीन, दो, छह, दो और छहसे भाजित राजू प्रमाण मन्दरक्षेत्रकी ऊँचाई है ।।२२२।।
विशेषार्थ :–३४३ धनराजू मापवाले लोककी भूमि ६ राजू, मुख एक राजू और ऊँचाई १४ राजू मानकर मन्दराकार अर्थात् लोकमें सुदर्शन मेरुकी रचना इसप्रकारसे की गई है :
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१.द. ब. चतिइगितीसहि ।