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गाथा : २१०-२१२ ] पढमो महाहियारो
[ ६६ बम्हत्तर-
हेरि रज्जु-घणा तिण्णि होति पत्तेक्कं । तंतय-कप्पम्मि दुगं रज्जु-घणों' सुक्क कप्पम्मि ॥२१०॥
३६. ३१३६, ३१३६, २१३३३१ अर्थ :-ब्रह्मोत्तर स्वर्गके नीचे और ऊपर प्रत्येक बाह्य क्षेत्रका घनफल तीन घनराजू प्रमाण है। लांतव स्वर्गतक दो घनराजू और शुक्र कल्प तक एक घनराजू प्रमाण धनफल है ॥२१॥
विशेषार्थ :-ब्रह्मोत्तर स्वर्गके नीचे और ऊपर अर्थात् क्षेत्र व ड र द और ध थ द रद्ध समान माप वाले हैं । इनकी भुजा राजू और प्रतिभुजा राजू प्रमाण है, अत: ब्रह्मोत्तर कल्पके नीचे और ऊपर वाले प्रत्येक क्षेत्र हेतु +3= ३, तथा घनफल = Pxxx७ =३ धनराजू प्रमाण है।
लांतष-कापिष्ट पर इ ध ढ उ से वेष्टित क्षेत्र हेतु (32+ 3 )-5, तथा घनफल =Fxt x३४७-२ धनराजू प्रभारण है।
शुक्र कल्पतक ए इ उ ऐ से वेष्टित क्षेत्र हेतु (+) , तथा घनफल =xsx ३४७-१ धनराजू प्रमाण है ।
अढाणदि-विहत्तो लोनो सदरस्स उभय-विदफलं । तस्स य बाहिर-भागे रज्जु-घणो अट्ठमो अंसो ॥२११॥
तम्मिस्स-सुद्ध-सेसे हवेदि अभंतरम्मि विदफलं । 'सत्तावीसेहि हदं रज्जू-घणमारपम हिदं ॥२१२॥
१. द. व, रज्जुघणा । २. द. ३. य.
। ३. व. ज. 3. ससाबसेहि । ४. ज. . दोर्दै ।
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