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तिलोयपणती
[ गाथा : २०८-२०६ सौधर्मशान स्वर्गके ऊपर लोकके एक पार्श्वभागमें क ख नामक छोटी भुजाका विस्तार राजू है। माहेन्द्र स्वर्गके ऊपर अन्तमें ग घ भुजाका विस्तार : राजू, ब्रह्मस्वर्गके पास म भ भुजाका विस्तार एक राजू, कापिष्ट स्वर्गके पास न त भुजाका विस्तार राजू, शुक्रके ऊपर अन्तमें च छ भुजाका विस्तार राजू, सहलारके ऊपर अन्तमें प फ छोटी-भुजाका विस्तार राजू, प्रारणतके ऊपर अन्तमें ज झ भुजाका विस्तार राजू और प्रारण-अच्युत स्वर्गके पास अन्तिम इन्द्रक विमानके ध्वजदण्डके समीप ट ठ छोटी-भुजाका विस्तार : राजू प्रमाण है ।
ऊर्ध्वलोकके ग्यारह त्रिभुज एवं चतुर्भुज क्षेत्रोंका घनफल्न सोहम्मे दलजुत्ता घणरज्जूमो हवंति चत्तारि । अबजुदाओ दि तेरस सरपक्कुमारम्मि रज्जूमो ॥२०॥ प्र8 सेण जुवायो घणरज्जूमोहवंति तिण्णि बहि ।
तं मिस्स सुद्ध-सेसं तेसीदी' अट्ठ-पयिहत्ता' ॥२०॥
अर्थ :-सौधर्मयुगल तक त्रिकोण क्षेत्रका घनफल अर्धधनराजूसे कम पांच (४३) घनराजू प्रमाण है । सनत्कुमार राज तक वा और प्रसार पोगों को मिश्र धनफल साढे तेरह घनराजू प्रमाण है । इस मिश्र घनफलमेंसे बाह्य त्रिकोण क्षेत्रका घनफल (३५) कम कर देनेपर शेष आठसे भाजित तेरासी घनराजू अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल होता है ।।२०८-२०६।।
संवृष्टि :-:२४३४७ - धनराजू घनफल सौधर्मयुगल तक; ५:२४१४७-१५ धनराजू घनफल सनत्कुमार कल्प तक बाह्य क्षेत्रका; [ (33):२४३४७ ] =१० बाह्य और अभ्यन्तर क्षेत्रका मिश्र घनफल ; ** - २५-६ धनराजू अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल है ।
विशेषार्थ :-गाथा २०३-२०७ से सम्बन्धित चित्रणमें सौधर्मयुगल पर अब स से वेष्टित एक त्रिकोण है, जिसमें प्रतिभुजाका प्रभाव है । भुजा ब स का विस्तार राजू है, अत: xsx ३x घनराजू घनफल सौधर्मयुगल पर प्राप्त हुआ ।
सनत्कुमार युगल पर्यम्त ड य ब स ल बाह्याभ्यन्तर क्षेत्र है । र ल रेखा और इ र रेखा है, अर्थात् ड ल रेखा (8+3)= 3 राजू हुई। प्रतिभुजा ब स का विस्तार राजू है, अतः
+ ९ तथा ३४३ x ७ = ३ पनराजू बाह्याभ्यन्तर मिश्रित क्षेत्रका घनफल प्राप्त हुआ । इसमेंसे ड य र बाह्य त्रिकोणका घनफल १४३४१४७-३५ धनराजू घटा देनेपर र य ब स ल अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल २३ – १६ घनराजू प्राप्त होता है।
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१.६.ब.सि इदि ।
२. ब. पविहत्था ।