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पदम महाहियारो
'सहसार- उबरिमंते सग-हिद- रज्जू य खुल्ल भुजरु दं ।
पाणद उवरिम चरिने छ रज्जू हवंति सत्त हिदा ॥ २०६ ॥ | १ | ६ |
गाथा : २०६ २०७ ]
अर्थ :-- सहस्रारके ऊपर अन्तमें सातसे भाजित एक राजू प्रमाण और प्राणतके ऊपर भन्त में सात से भाजित छह राजू प्रमाण छोटी-भुजाका विस्तार है ।। २०६ || सह० के राजू ; प्रा० राजू । पणिधीसु प्रारणच्चुद कप्पाणं चरिम-इंवय- धयागं । खुल्लम-भुजस्स रुंदं चउ रज्जूम्रो हर्षाति सत्त-हिवा ॥२०७॥
४ ४ ।
अर्थ :- आरण और अच्युत स्वर्गके पास अन्तिम इन्द्रक विमानके ध्वज - दण्डके समीप छोटी-भुजाका विस्तार सातसे भाजित चार राजू प्रमाण है || २०७|| प्रारण अच्युत राजू । विशेषार्थ :- गाथा २०३ से २०७ तक का विषय निम्नांकित चित्रके आधार पर समझा जा सकता है :
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