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गाथा : २०१-२०२ ] पढमो महाहियारो
[ ६५ स्तम्भ-अन्तरित क्षेत्रोंका धनफल छप्पण-हरिदो लोगो 'ठाणेसु दोसु उत्रिय गुणिदन्यो । एक-तिएहि ए६ थंभंतरिदारण विदफलं ॥२०१॥ एवं विय', विदफलं संमेलिय चउ-गुरिणदं होदि तस्स काढूण । मज्झिम-खेते मिलिदे तिय-गुणिदो सग-हिदो लोश्रो ॥२०२।।
अर्थ :-छप्पनसे विभाजित लोक दो जगह रखकर उसे क्रमश: एक और तीनसे गुणा करनेपर स्तम्भ-अन्तरित दो क्षेत्रोंका घमफल प्राप्त होता है ।।२०१।।
इस घनफल को मिलाकर और उसको चारसे गुणाकर उसमें मध्यक्षेत्र के घनफल को मिला देने पर पूर्ण ऊर्ध्वलोकका घनफल होता है । यह घनफल तीनसे गुणित और सातसे भाजित लोकके प्रमाण है।
३४३:५६४१-६१३४३.:-५६४३-१८१ ३४३४३+७=१४७ धनराज घनफल।
विशेषार्थ :- गाथा २०० से सम्बन्धित चित्रणमें स्तम्भोंसे अन्तरित एक पार्श्वभागमें ऊपरकी अोर सर्वप्रथम प फ और म से वेष्टित त्रिकोण क्षेत्रका घनफल इसप्रकार है
उपर्युक्त त्रिकोण में फ म भुजा एक राजू है । इसमें प्रतिभुजा का अभाव है। इस क्षेत्रकी ऊँचाई , राजू है, अत: (१४३xxk)- ४. अर्थात् ६६ घनराजू प्रथम क्षेत्रका घनफल
उसी पार्श्वभागमें प म च छ जो विषम-चतुर्भुज है, उसकी छ च भुजा और ए म प्रतिभुजा है।+है-- ।.xxxt-4 अर्थात् १५३ धनराजू धनफल प्राप्त होता है । इन दोनों घनफलोंको मिलाकर योगफलको ४ से गुरिणत कर देना चाहिए क्योंकि अवलोकके दोनों
१. क्र. ब. हरिदलोउ । ज. द. 3. हरिदलोश्रो। २. द. ठ. ज. वारणेसु । ३. द. ब. क. ज. रविय । ४. क. पदत्थं भत्तरिदारण । ५. य. ब. एदनिय। ६. क. 1 E३ | द. ज. प. ३ ।