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गाथा : १८५ ]
पढमो महाहियारो इनका आधा करनेपर प्रत्येक दिशामें बाह्य छोटी भुजाका विस्तार क्रमशः और राजू रहता है । ६ठी और ७ वीं पृश्वियोंके मुखों तथा लोकके अन्तमेंसे पांच-पांच राजू निकाल देनेपर क्रमशः ( -१) , ( -2) और (१९ – १५)=१४ राजू अवशेष रहता है । इनमें से प्रत्येकका प्राधा करनेपर एक दिशामें बाह्य छोटी भुजाका बिस्तार क्रमशः , और राजू प्राप्त होता है, इसीलिए इस गाथामें को तीन आदिसे गुरिणत करनेको कहा गया है । यथा :
उपर्युक्त चित्रण में :
ग में
66GNCAl
झ में
लोयंते रज्जु-घरपा पंच च्चिय अद्ध-भाग-संजुत्ता । सत्तम-खिदि-पज्जंता अड्ढाइज्जा हवंति फुडं ॥१८॥