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गाथा : १८२-१८३ ] पदमो महाहियारो
[ ५३ ____ "प्र" क्षेत्र त्रिकोणाकार है अतः उसमें प्रतिभुजाका अभाव है। अ क्षेत्रकी भुजाकी लम्बाई राजू और क्षेत्रका व्यास एक राजू है । लम्बायमान बाहु ( 8 ) को व्यासके आधे (1) से प्रौर मोटाईसे गुणित कर देनेपर लम्बे घाहु युक्त त्रिकोण क्षेत्रका क्षेत्रफल प्राप्त हो जाता है । यथा : *४३४ अर्थात् ८, धनराजू 'अ' त्रिकोण क्षेत्रका घनफल प्राप्त हुआ । यही क्षेत्रफल गाथा १८२ में दर्शाया गया है।
अभ्यन्तर क्षेत्रोंका घनफल वादाल-हरिद-लोयो विदफलं चोदसावहिव-लोप्रो । तम्भतर-खेत्तारणं पण हद-लोप्रो वुदाल-हिदो ॥१२॥
अर्थ :- लोकको बयालीससे भाजित करनेपर, चौदहसे भाजित करनेपर और पाँचसे गुरिणत एवं बगालीससे भाजित करनेपर क्रमश: (अ.ब.स.) अभ्यन्तर क्षेत्रोंका धनफल निकलता है।।१८२॥ विशेषार्थ : -३४३ : ४२ = धनराजू 'अ' क्षेत्रका घनफल ।
३४३ : १४= २४ धन राजू 'ब' क्षेत्रका घनफल ।
३४३४५४२-४०१ धनराजू 'स' क्षेत्रका घनफल । नोट :.. इन तीनों घनफलोंका चित्रण गाथा १८० के विशेषार्थ में और प्रक्रिया गा० १८१ के विशेषार्थमें दर्शा दी गई है।
सम्पूर्ण अधोलोकका धनफल
एदं खेत-पमाणं मेलिद सयलं पि दु-गुरिणदं कादु । मझिम-खेत्ते मिलिदे 'चउ-गुणिदो सग-हिदो लोगो॥१८३॥
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१. द.ब. क.ज.ठ. चउगुरिणदे सगहिदे।
२२. ज.
२.
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